Brihaspati ka vrishabh lagn mein fal(बृहस्पति का वृषभ लग्न में फल)

 वृषभ लग्न में बृहस्पति का शुभ अशभ फल -:

वृषभ लग्न पत्रिका में बृहस्पति को नवम भाव व एकादश भाव का स्वामित्व प्राप्त होता है। लग्नेश शुक्र देव के अति शत्रु होने कारण बृहस्पति यहां अति मारक होते हैं क्योंकि अष्टम भाव अति मारक व एकादश भाव को भी अति भागदौड़ व स्ट्रगल का भाव माना जाता है। इसलिए अधिकांश भावों में बृहस्पति नकारात्मक परिणाम प्रदान करने वाले होते हैं। तो आइए जानते हैं कि बृहस्पति  वृषभ लग्न के किस भाव में किस प्रकार का फल जातक को प्रदान करते हैं।

१, वृषभ लग्न पत्रिका के प्रथम भाव में बृहस्पति जातक को दृढ़ इच्छा शक्ति वाला व कुछ शारिरिक परेशानियां प्रदान करने वाले होते हैं। यहां से उनकी पंचम दृष्टि पंचम भाव पर होने कारण विद्या संतान मित्रता प्रेम इत्यादि के क्षेत्र में कुछ कठिनाइयां उत्पन्न करते हैं। सप्तम दृष्टि से सप्तम भाव को देखने कारण दैनिक व्यवसाय की आमदनी दांपत्य जीवन में भी प्रॉब्लम कैरिट करते हैं। नवम दृष्टि से नवम भाव को देखने कारण जातक को भाग्य संबंधी समस्या उत्पन्न करते हैं। राजकीय मान सम्मान में कमी लाते हैं। साथ ही अष्टम भाव के स्वामी बनने के कारण जातक को असाध्य बीमारियां व मानसिक परेशानी के साथ-साथ आय के क्षेत्र में कमी करते हैं क्योंकि त्रिक भाव अर्थात अष्टम भाव के स्वामी होने कारण अतिमारक बने हुए हैं।

२, गुरु बृहस्पति वृषभ लग्न पत्रिका के दूसरे भाव में होने कारण जातक के विवेक में कमी, कुटुम परिवार के प्रेम में कमी, धन संग्रह में कठिनाइयां उत्पन्न करते हैं। पंचम दृष्टि से छठे भाव को देखने के इ रोग कर्ज व शत्रुता में वृद्धि करने वाले होते हैं। सप्तम दृष्टि से अष्टम भाव को देखने कारण मानसिक अवसाद बीमारियां व अनावश्यक चिंताएं उत्पन्न करते हैं। नवम दृष्टि से दशम भाव को देखते हैं तो राजकार्य में बाधा प्रोफेशनल जॉब में समस्याएं उत्पन्न करते हैं। साथ ही  आमदनी के स्रोतों में बार-बार बदलाव करवाते हैं।

३, वृषभ लग्न पत्रिका के चतुर्थ भाव में बृहस्पति उच्च के होते हैं। अतः जातक को छोटे भाई बहनों का प्रेम पराक्रमी मेहनती व साहसी बनाते हैं किंतु अष्टम भाव व एकादश भाव के स्वामी होने कारण जातक को अनेक बार मानसिक अवसाद बीमारियां आय के स्रोतों में बदलाव की स्थिति उत्पन्न करते रहते हैं। पंचम दृष्टि से सप्तम भाव को देखते हैं। जिससे दांपत्य जीवन में कुछ कठिनाई के साथ स्थिति को सामान्य बनाए रखते हैं।  सप्तम दृष्टि से नवम भाव को देखने कारण कुछ भाग्य की विडंबना बनाते हैं। पिता से संबंधों में कड़वाहट उत्पन्न करते हैं क्योंकि यहां उनकी नीच दृष्टि होती है। नवम दृष्टि से एकादश भाव को देखने के कारण लक्ष्मी प्राप्ति कराने में सपोर्ट करते हैं किंतु मेहनत जातक को अधिक करवाते हैं।

४, वृषभ लग्न कुंडली के चतुर्थ भाव में अष्टमेश गुरुदेव जातक को भवन वाहन प्रॉपर्टी जायदाद का सुख तो प्रदान करते हैं। किंतु माता के सुख से वंचित करते हैं। साथ ही उपयुक्त संसाधनों की प्राप्ति के लिए जातक को अधिक मेहनत करवाते हैं। पंचम दृष्टि से अष्टम भाव को देखने के कारण जातक की आयु को बढ़ाने वाले व पुरातत्व के क्षेत्र में लाभ दिलाते हैं। साथ ही विशेष खोज संबंधी या गुप्त विधाओं में पारंगत बनाते हैं। सप्तम दृष्टि से दशम भाव को देखते हैं तो राज कार्य में व्यवधान उत्पन्न करते हैं । और जातक को विदेशी मामलों के कार्य में सफलता दिलाते हैं।

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५, बृहस्पति पंचम भाव में विद्यमान होने कारण जातक को विद्या व संतान सुख में  कमी प्रदान करते हैं क्योंकि अष्टमेश बनने कारण मारक सिद्ध हो रहे हैं। पंचम दृष्टि से नवम भाव को देखते तो उच्च शिक्षा व्यवधान धार्मिक कार्यों में विरक्ति पिता से मनमुटाव भाग्य की विडंबना जैसी समस्याएं उत्पन्न करते हैं। सप्तम दृष्टि से एकादश भाव को देखेंगे तो जातक की आमदनी के स्रोतों में बार-बार बदलाव होगा जातक की भागदौड़ बढ़ेगी, साथ ही छोटी-छोटी बीमारियां जातक के साथ बनी रहती है। नवम दृष्टि से लग्न को देखने के कारण जातक को किसी भी कार्य को करने के लिए बहुत अधिक मेहनत करना पड़ता है।


६, वृषभ लग्न पत्रिका के छठे भाव में अष्टमेश गुरु विद्यमन होने से जातक को विपरीत राजयोग में आ जाने के कारण मारक होने पर भी शुभ फल प्रदान करने वाले हो जाते हैं। क्योंकि ज्योतिष के अनुसार 6 8 12 का स्वामी 6 8 12 में से किसी भी एक भाव में हो तो वह विपरीत राजयोग का निर्माण करके मारक होकर भी शुभ फल देने वाला हो जाता है। अतः यहां गुरु जातक को लंबी चली आ रही बीमारी का नाश करने वाले कंपटीशन के क्षेत्र में सफलता दिलाने वाले, लेनदेन ब्याज भट्टे में लाभ दिलाने वाले सिद्ध होते हैं किंतु पुरातत्व के क्षेत्र में  हानि पहुंचाते हैं। पंचम दृष्टि से दशम भाव को देखते हैं। इस कारण से विषम परिस्थितिया स्ट्रगल करवाकर  राजकीय क्षेत्र में सफलता दिलवा देते हैं। परंतु प्रोफेशनल जॉब राजकीय कार्यों में व्यवधान भी उपस्थित करते हैं। सप्तम दृष्टि से  द्वादश  भाव को देखते हैं जिस कारण  घर से दूर रहकर जातक को धन प्राप्ति में सहायक होते हैं परंतु फिजूलखर्ची भी बढ़ाते हैं। नवम दृष्टि से द्वितीय भाव को देखने कारण धन संग्रह कुटुम परिवार में लाभ पहुंचाते हैं। किंतु सामान्य तौर पर कुछ समस्याएं भी आती है।

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७, वृषभ लग्न कुंडली के सप्तम भाव में गुरु विद्यमान होने के कारण जातक को स्त्री सुख में व्यवधान दैनिक आमदनी में कमी पार्टनरशिप के जॉब या बिजनेस में नुकसान पहुंचाते हैं। पंचम दृष्टि से 11वे भाव को देखने कारण लक्ष्मी प्राप्ति या धन प्राप्ति के स्रोतों में वृद्धि करते हैं। सप्तम दृष्टि से लग्न भाव को देखते हैं जिस कारण जातक को शारीरिक दुर्बलता व स्वार्थी बनाते हैं। अपनी उच्च दृष्टि से तीसरे भाव को देखते हैं जिस कारण से जातक के पराक्रम साहस व मनोबल में वृद्धि करने के साथ-साथ छोटे भाई बहनों का सुख प्रदान करते हैं।


८, गुरु अष्टम भाव में यदि लग्नेश शुक्र बलवान हो तो विपरीत राजयोग में आते हैं। इसलिए मारक होकर भी जातक को विषम परिस्थितियों में भी अच्छा लाभ प्रदान  करवा देते हैं। जातक की आयु को बढ़ाने वाले पुरातत्व के क्षेत्र में सफलता दिलाने वाले ससुराल पक्ष धन अर्जुन कराने वाले होते हैं। आय के स्रोतों  में कमी या  बार-बार बदलाव करने की स्थिति बनाते रहते हैं। पंचम दृष्टि से द्वादश भाव को देखते हैं। इसलिए जातक को विदेशी संबंध बनाकर धन अर्जन में सहयोग करते हैं। किंतु बहुत अधिक खर्चे जातक के जीवन में बना देते हैं। सप्तम दृष्टि से दूसरे भाव को देखते हैं। इसलिए जातक को विवेकशील व धन संग्रह में सहयोग करते हैं। क्योंकि उनकी यहां मित्र दृष्टि होती है। नवम दृष्टि से चतुर्थ भाव को देखने कारण जातक को भवन वाहन व माता का सुख प्रदान करते हैं। यदि विपरीत राजयोग में आते हैं तो अन्यथा भवन प्रॉपर्टीज का सुख से वंचित करते है।


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९, वृषभ लग्न पत्रिका के नवम भाव में अष्टमेश गुरु जातक को भाग्यहीन धर्म-कर्म से विमुख पिता से मनमुटाव राजकीय सम्मान में कमी उच्च शिक्षा में कठिनाइयां उत्पन्न करते हैं। पंचम दृष्टि से लग्न भाव को देखने कारण जातक को शारीरिक दुर्बलता विवेक हीन बनाते हैं। सप्तम दृष्टि से तीसरे भाव को देखते हैं जो कि उनकी उच्च दृष्टि होती है। इसलिए जातक को मेहनत पराक्रम  साहस में वृद्धि  करते हैं। तथा छोटे भाई बहनों का सुख प्रदान करते हैं। नवम दृष्टि से पंचम भाव को देखते हैं। जिससे जातक को विद्या संतान प्रेम लॉटरी के क्षेत्र में प्राय नेगेटिव परिणाम प्राप्त होते हैं।

१०, दशम भाव में अष्टमेश गुरु जातक के जीवन में पिता से मनमुटाव राजकार्य में बाधा प्रोफेशनल जॉब में कठिनाइयां उत्पन्न करते हैं। साथ ही पंचम दृष्टि से दूसरे भाव को देखने कारण धन संग्रह कुटुम परिवार में भी समस्या उत्पन्न करते हैं। तो सप्तम दृष्टि से चतुर्थ भाव को देखने कारण माता के सुख भूमि वाहनन प्रॉपर्टी जायदाद के क्षेत्र में भी जातक को बहुत अधिक स्ट्रगल करवाते हैं। नवम दृष्टि से छठे भाव को देखने कारण रोग शत्रु क़र्ज़ दुर्घटना जैसी स्थिति उत्पन्न करते हैं।


११, वृषभ लग्न पत्रिका के एकादश भाव में स्वराशि गत अष्टमेश गुरु जातक को आय संबंधी क्षेत्र में लाभ प्रदान करता है। लेकिन इसके लिए जातक को अधिक स्ट्रगल करवाते है। अनेक बार जातक को अपने आय के स्रोतों बदलाव करने पड़ते हैं। पंचम  उच्च दृष्टि से तीसरे भाव को देखने के कारण जातक को छोटे भाई बहनों का सुख  साहस पराक्रम में वृद्धि करते हैं। सप्तम दृष्टि से पंचम भाव को देखने कारण विद्या संतान प्रेम के क्षेत्र में आंशिक समस्याएं उत्पन्न करते हैं। नवम दृष्टि से सप्तम भाव को देखने कारण जातक को स्त्री सुख प्राप्त होता है। किंतु बीच-बीच में समस्याएं दांपत्य जीवन में बनाते हैं।


१२, द्वादश भाव में गुरु जातक को घर से दूर रहकर धन अर्जन में सहयोग करते हैं किंतु जातक को बहुत अधिक खर्चीला प्रकृति का बनाते हैं। साथ ही अनावश्यक खर्चे जातक के जीवन में बने रहते हैं। पंचम दृष्टि से चतुर्थ भाव को देखते हैं। जिस कारण भवन वाहन प्रॉपर्टी जायदाद के क्षेत्र में कठिनाइयों के साथ सुख प्राप्त करवाते हैं। सप्तम दृष्टि से सप्तम भाव को देखने कारण रोग ऋण शत्रु दुर्घटना जैसी स्थिति उत्पन्न करते हैं नवम दृष्टि षष्टम भाव को देखने के कारण जातक को मानसिक तनाव बीमारियां प्रदान करने वाले होते हैं।



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