पंचांग में करण का महत्व

एस्ट्रोलॉजर आचार्य केके शास्त्री


 पंचांग में करण का महत्व  विचार -:


(करण का निर्णय करना)

जैसा कि हम जानते हैं कि पंचांग पांच तत्वों से मिलकर बना होता है तिथि वार नक्षत्र योग और करण इन्हीं पांच तत्वों के सम्मिलित रूप को पंचांग की संज्ञा दी जाती है। अतः आज हम पंचांग में करण तत्व के विषय में अध्ययन करते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार तिथि का आधा भाग करण कहलाता है। अर्थात एक तिथि में दो करण आते हैं। जिन्हें पूर्वार्ध और उत्तरार्ध के रूप में विभक्त किया गया है। कृष्ण पक्ष की तिथि संख्या में 7 का भाग देने पर अवशिष्ट संख्या का करण तिथि के पूर्वार्ध में आता है। तथा शुक्ल पक्ष में तिथि  की संख्या को दुगनी कर उनमें से दो घटाकर 7 का भाग देने पर अवशिष्ट संख्या का करण तिथि के पूर्वार्ध में आता है। और उनसे आगे का करण  तिथि के उत्तरार्ध में आता है।

इस प्रकार प्रत्येक तिथि में दो करण आते हैं। अतः तिथि के आधे भाग को करण कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र में मुख्य रूप से  11 करण होते हैं।

बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज,विष्टी, शकुनी, चतुष्पद,नाग, किंस्तुघ्न,


इस प्रकार प्रारंभ के क्रम से सात करण चर संज्ञक होते हैं। और अंत के चार करण स्थर संज्ञक होते हैं। प्रारंभ के क्रम से छह करण शुभ कार्य मैं ग्रहण किए जाते हैं। वृष्टि (भद्रा)करण को शुभ मुहूर्त में अशुभ माना जाता है। बाकी के 4 करण में पितृ कार्य ही करने योग्य होते है।


तिथि में करणो की स्थिति को निम्न तालिका में स्पष्टता से समझ सकते हैं।-:




उपरोक्त तालिका से स्पष्टता से हम समझ चुके हैं कि जैसे कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के दिन तिथि के पूर्वार्ध में बालव और उत्तरार्ध में गर दितीया तिथि को पूर्वार्ध में तैतील व उत्तरार्ध में गर तृतीया तिथि को पूर्वार्ध में वणिज व उत्तरार्द में विष्टी करण आता है।

(भद्रा काल)-:


और जिस जिस तिथि को पूर्वार्ध या उत्तरार्ध में विष्टी करण आता है उस दिन भद्रा काल होता है। इस प्रकार कृष्ण पक्ष में चार बार विष्टी करण की आवर्ती हो रही है उसी प्रकार शुक्ल पक्ष में चार बार विष्टी करण की आवर्ती हो रही है। इस प्रकार प्रत्येक महीने में कुल मिलाकर आठ तिथीयो में भद्रा होती है। जिनमें चार बार कष्ट पक्ष में चार बार शुक्ल पक्ष में भद्रा काल आता है।

कृष्ण पक्ष की सप्तमी और चतुर्दशी में विष्टी करण तिथि के पूर्वार्ध में आने के कारण भद्रा इन तिथियों के पूर्वार्ध में आती है तथा तीज व दशमी के दिन विष्टी करण उत्तरार्ध में आता है। इस कारण तीज व दशमी के दिन की भद्रा तिथि के उत्तरार्ध में मानी जाती है।

शुक्ल पक्ष की अष्टमी और पूर्णमासी को विष्टी करण का योग  तिथि के पूर्वार्ध में होता है। इसलिए इन दिनों की भद्रा तिथि के पूर्वार्ध में होती है। चतुर्थी व एकादशी तिथि में विष्टि करण तिथि के उत्तरार्ध होने कारण भद्रा भी तिथि के उत्तरार्ध में आती है।

बाकी भद्रा की विस्तार से चर्चा हम पूर्व लेख में कर चुके हैं। यहां केवल करण प्रसंग में विष्टि करण प्रसंग में भद्रा का उल्लेख किया गया है।



एस्ट्रोलॉजर आचार्य कौशल कुमार शास्त्री

 वैदिक ज्योतिष शोध संस्थान

 चौथ का बरवाड़ा, सवाई माधोपुर 

राजस्थान 9414 6572 45


Post a Comment

0 Comments