क्यों माना जाता है भद्राकाल को अशुभ?

 भद्रा (विष्टीकरण) विचार -:

जैसा कि हम जानते हैं कि तिथि वार नक्षत्र योग करण इन पांच तत्वों के योग को पंचांग कहा जाता है। और किसी भी शुभ अशुभ समय का विचार करते समय हम मुख्य रूप से इन पांच तत्वों का ही मिलान करके शुभ अशुभ समय का निर्धारण करते हैं। इस प्रकार किसी भी शुभ कार्य में हम मुख्य रूप से भद्रा का विचार करते हैं क्योंकि किसी भी शुभ कार्य में भद्रा को शुभ नहीं माना जाता है। आखिर क्या कारण है? कि भद्रा को शुभ कार्य में नहीं गिना जाता है और भद्रा कौन है? और इसे शुभ क्यों नहीं माना जाता है?

भद्रा का परिचय -:

हमारे धार्मिक पुराणों के अनुसार भद्रा सूर्यदेव व छाया देवी की पुत्री और शनि देव की बहन है। भद्रा का स्वभाव भी शनिदेव के समान ही कुटिल व कठोर है। इसका स्वरूप काला भयंकर लंबे दांत व विशाल काले केशो वाला बताया गया है। देवासुर संग्राम में भद्रा ने दानवों का संहार किया था।। दानवो का संहार करने के पश्चात भद्रा संपूर्ण जगत के प्राणियों को संतापित करने लगी
तब ब्रह्मा जी ने भद्रा को काल गणना में 11 करणों में सातवां विष्टीकरण के रूप में स्थान दिया। तथा ब्रह्मदेव ने भद्रा से कहा कि जो भी तुम्हारी उपेक्षा या अपमान करे तो  उनके कार्यों में विघ्न उत्पन्न करना और कार्य सिद्धि में रुकावटें उत्पन्न करना। यही कारण है कि आज हम विवाह मुंडन यज्ञोपवीत संस्कार ग्रहप्रवेश, या अन्य अन्य सभी प्रकार के शुभ कार्यों में भद्रा का त्याग करते हैं।


इस प्रकार भद्रा पंचांग का एक प्रमुख अंग करण का अंश होती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार करणो क संख्या 11 होती है। जो सर व अचर रुप में  विभक्त किए गए हैं। जिनमें चर अर्थात गतिशील करणों में - बव,बालव, कौलव, तैतिल, गर ,वणिज और विष्टी , ये सात करण चर अर्थात गतिशील करण होते हैं। तथा शकुनी, चतुष्पद,नाग और किंस्तुघ्न ये चार करण अचर अर्थात अगतिशील होते हैं। इस प्रकार करण पंचांग का प्रमुख अंग होते हैं और करण तिथि का आध भाग  के बराबर होता है। इनकी संख्या 11 होती है। जिनमें सात चर और चार अचर होते हैं। जिनमें चर संज्ञक करणो में सातवें नंबर का विष्टी करण को ही भद्रा की संज्ञा दी गई है।

भद्रा का निवास -:

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब चंद्रमा कर्क सिंह कुंभ मीन राशि में विचरण कर रहे हो और उस समय विष्टी करण का योग हो तो  भद्रा का निवास पृथ्वी लोक पर होती है। तथा जब चंद्रमा मेष वृष मिथुन वृश्चिक में हो और उस समय विष्टी करण का योग बनता हो तो भद्रा का निवास स्थान स्वर्ग में होता है। इसी प्रकार यदि चंद्र देव कन्या तुला धनु मकर राशि में हो और उस समय विष्टी करण पड रहा हो तो भद्रा का निवास स्थान पाताल में होता है। इनमें पाताल व स्वर्ग लोक की भद्रा सदैव शुभ फलदायक होती है तथा मृत्यु लोक की भद्रा अशुभ होती है।

भद्रा काल -:

ज्योतिष ग्रंथ मुहूर्त चिंतामणि के अनुसार  भद्राकाल शुक्ल पक्ष की अष्टमी और पूर्णमासी के पूर्वार्ध में, तथा चतुर्थी और एकादशी के उत्तरार्ध में, पतरा काल होता है उसी प्रकार कृष्ण पक्ष में तीज और दसवीं के उत्तरार्ध में, तथा सप्तमी और चतुर्दशी के पूर्वार्ध में भद्रा काल होता है। तिथि के उत्तरार्ध में होने वाली भद्रा दिन में हो और पूर्वार्ध में होने वाली भद्रा रात्रि में हो तो शुभ होती हैं।


भद्रा काल में नहीं किए जाने वाले कार्य -:

जैसा कि हम जान चुके हैं कि जब भद्रा स्वर्ग में पाताल लोक में होती है तो वह शुभ होती है किंतु जब भद्रा का निवास पृथ्वी पर होता है तो वह अशुभ होती है। इसलिए पृथ्वीलोक की भद्रा में विवाह मुंडन जात क्रम नामकरण   नवीन कार्य का प्रारंभ गृह प्रदेश  इत्यादि किसी भी प्रकार का शुभ कार्य नहीं करते हैं।

भद्रा काल में करने योग्य कार्य -:

भद्रा काल में कुछ कार्य विशिष्ट फल देने वाले हो जाते हैं जैसे मुकदमा, ऑपरेशन, तंत्र प्रयोग, शत्रु पर वार, वाहन  क्रय इत्यादि कार्य भद्रकाल में करने पर विशिष्ट फल देने वाले होते हैं।



आचार्य कौशल कुमार शास्त्री

 वेदिक ज्योतिष शौध संस्थान

 चौथ का बरवाड़ा, सवाई माधोपुर राजस्थान 9414 6572 45


एस्ट्रोलॉजर आचार्य केके शास्त्री




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