सातों वारों की व्रत विधि (सप्तवार व्रत विधि)




 रविवार व्रत विधि -:


रविवार का व्रत किसी शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से प्रारंभ करना चाहिए, तथा 1 वर्ष तक अथवा 30 या 12 व्रत करना चाहिए। इस दिन भोजन में गेहूं की रोटी गेहूं का दलिया  हलवा इत्यादि सेवन कर सकते हैं। भोजन में नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। साथ ही भोजन सूर्यास्त से पहले कर लेना चाहिए। भोजन के पूर्व घर में बनाए जाने वाले पकवान का कुछ भाग देवस्थान या बालक बालिका को देखकर भोजन करना चाहिए।  स्नान करके  रक्त चंदन का तिलक करें तथा रोली अक्षत लाल पुष्प मिश्रित जल से सूर्य नारायण को जल अर्पण करें। अंतिम अंतिम रविवार को हवन क्रिया के बाद योग्य दंपति को भोजन कराकर लाल वस्त्र और यथा शक्ति के अनुसार दक्षिणा प्रदान करें। व्रत के दिन लाल रंग का बनियान या वस्त्र धारण करना शुभ होता है।" ऊं घृणि: सूर्यास्त नमः" बीज मंत्र का यथाशक्ति मानसिक जाप करना भी योग्य होता है। 


सोमवार व्रत विधि -:

सोमवार का व्रत चैत्र वैशाख श्रावणी या कार्तिक मार्गशीर्ष  मास   के किसी शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से प्रारंभ करें तथा 10 या 54 व्रत करें। भोजन में दही दूध चावल अथवा खीर के प्रथम 7 ग्रास खावे फिर अन्य पदार्थ सेवन करें। भोजन के पूर्व किसी विद्यार्थी को उपरोक्त  पदार्थ का यथा संभव  अनुदान करें तथा भोजन सूर्यास्त बाद करना चाहिए। इस दिन सफेद रंग के वस्त्र धारण करें। प्रातः स्नान के बाद चंदन का तिलक लगाएं तथा शिवालय में जाकर भगवान शिव का पूजन करें। 
 "ॐ सोम सोमाय नमः" इस बीज मंत्र का यथाशक्ति  मानसिक जाप करना चाहिए। 

मंगलवार व्रत विधि -:


मंगलवार का व्रत किसी शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार से प्रारंभ करना चाहिए तथा कम से कम 21 व्रत अवश्य करना चाहिए। भोजन में नमक का सेवन करना ठीक नहीं होता है। व्रत के दिन हनुमान जी के मंदिर में जाकर हनुमान जी के सम्मुख तेल का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए तथा लाल पुष्प की माला हनुमान को पहनावे,हनुमान अष्टक बजरंग बाण के पाठ भी श्रद्धा पूर्वक करना चाहिए। ॐ अं अंगारकाय नमः इस मंत्र का यथाशक्ति मानसिक जाप करना चाहिए। अंतिम मंगलवार के दिवस पर हवन क्रिया के बाद बालक कन्याओं को भोजन करा कर  दक्षिणा स्वरूप लाल वस्त्र ताम्रपत्र गुड़ नारियल आदि का दान करना चाहिए। यह व्रत ऋण निवारक आर्थिक समस्या का समाधान सूचक संतति प्रदायक मातृशक्ति विकास का सूचक होता है।


बुधवार व्रत विधि -:

बुधवार का व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार से प्रारंभ करना चाहिए तथा कम से कम 21 या 45 वर्ष करना चाहिए। भोजन में मूंग की दाल, चावल की खिचड़ी, मूंग का हलवा, हरी मूंग की पकौड़ी 4, 5 ग्रास भोजन से पहले लेवे बाद में अन्य पदार्थ का सेवन करें। भोजन करने के पूर्व 5,7 तुलसी पत्र गंगा जल शुद्ध जल के साथ सेवन करें।  इस दिन हरे रंग का बनिया वस्त्र धारण करना चाहिए। ॐ बूं बुधाय नमः इस मंत्र का यथाशक्ति मानसिक जाप करें। यह व्रत विद्या बुद्धि वर्धक व्यापार वर्धक होता है।


गुरुवार व्रत विधि -:

गुरुवार का व्रत भी किसी शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार से प्रारंभ करना चाहिए तथा 3 वर्ष या 1 वर्ष अथवा 16 संख्या के व्रत करना चाहिए। इस दिन कुछ हल्दी मिश्रित जल से स्नान करें तथा केसरिया हल्दी का तिलक लगाएं तथा पीले रंग का वस्त्र धारण करें। भोजन में चने की दाल से बने पदार्थ हलवा मोदक
  केसरिया चावल आदि पदार्थ प्रथम सात ग्रास लेवे अन्य पदार्थ बाद में लेवे। इन्हीं वस्तु का किसी पीली गाय को अथवा विद्यार्थी एवं अध्यापक को दान करना चाहिए। इस दिन केले के वृक्ष की पूजा दर्शन जल प्रदान करना भी अति शुभ होता है। ऊं बृं बृहस्पतये नमः इस बीज मंत्र का यथाशक्ति मानसिक जाप करें अंतिम व्रत के दिन हवन क्रिया के बाद बालक विद्यार्थियों को भोजन करावे दक्षिणा स्वरूप पीले वस्त्र का दान करें। यह व्रत विद्या बुद्धि प्रदाता, उत्तम स्थान पद प्रदायक, धनसंपदा की स्थिरता हेतु, दांपत्य सुख शांति, समृद्धि सूचक होता है।


शुक्रवार व्रत विधि -:

यह व्रत किसी शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से प्रारंभ करना चाहिए 21 या 31 व्रत करने का विधान है। इस दिन स्नान के बाद शचद्धू सफेद वस्त्र ही पहने यथासंभव सफेद वर्ण की गाय के दर्शन तथा सर्वप्रथम एक या दो कन्या के दर्शन करें तथा श्रीफल नारियल देवें। भोजन में दूध दही चावल खीर  साबूदाना सफेद मेवा मिष्ठान केला गेहूं की रोटी आदि का सेवन करे। ऊं शुं शुक्राय नमः इस मंत्र का यथाशक्ति मानसिक जाप करें। रात्रि शयन सफेद चादर पर ही करना चाहिए तथा भक्ति संगीत श्रवण मनन करते शयन करें। अंतिम व्रत के दिन 9 कन्याओं को भोजन कराना चाहिए। दक्षिणा स्वरूप सफेद वस्त्र दान करना चाहिए। अविवाहित स्त्री पुरुष हेतु मनोकामना सिद्धि प्रदायक तथा दांपत्य सुख वर्धक होता है। स्त्री पुरुष कुमार कुमारी सभी के लिए यह व्रत अति शुभ फलदायक होता है।

शनिवार व्रत विधि -:

यह वक्त भी शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से प्रारंभ किया जाता है। 19 अथवा 31 व्रत करने का विधान बताया गया है। इस दिन स्नान के बाद लोटा भर जल में कुछ काले तेल लोंग, दूध शक्कर आदि मिलाकर पीपल या शमी के वृक्ष के दर्शन करके पश्चिम दिशा की तरफ मुंह करते हुए जल प्रदान करना चाहिए। भोजन में उड़द दाल से बने पदार्थ तथा विविध फल विशेषकर केला एवं तेल से निर्मित पदार्थ का सेवन करना चाहिए। इन वस्तुओं का दान कर सकते हैं। ओम शं शनिश्चराय नमः इस मंत्र का मानसिक जाप करना चाहिए। अंतिम व्रत के दिन हवन क्रिया के बाद यथाशक्ति तेल तिल छतरी जूता कंबल नीला काला वस्त्र लोहा  तिल के मोदक आदि का निर्धन व्यक्ति को दान करना चाहिए। विशेषकर कबूतरों को दाना तथा चीटियों के बिल पर आटा डालना अति शुभ होता है।




आचार्य कौशल कुमार शास्त्री



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