Muhurt vichar

 Muhurat vichar-:

ज्योतिष शास्त्र में काल के प्रमुख  पांच अंगों का महत्व होता है।१, वर्ष २,मास ३, दिन ४, लग्न ५, मूहूर्त ।
अतः आज हम मुहूर्त के विषय में सम्यक अध्ययन करेंगे।, हमारे दैनिक जीवन में मुहूर्त का बहुत अधिक महत्व होता है। संसार के सभी कार्यों में मुहूर्त का महत्व सर्वविदित है। दो घटी का एक मुहूर्त होता है। हमारे प्राचीन महर्षिर्यों ने काल का सूक्ष्म विवेचन कर स्पष्ट किया है कि प्रत्येक कार्य का अलग-अलग गुण धर्म के आधार पर अलग-अलग मुहूर्त होता है। इस प्रकार एक सांसारिक कार्य के लिए अलग-अलग मूहुर्तो का विधान हमारे प्राचीन शास्त्रों में वर्णित है। इसी श्रृंखला में हम कुछ महत्वपूर्ण मुहूर्तों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे जो इस प्रकार है।

१, गर्भाधान मुहूर्त विचार -:

 भारतीय सोलह संस्कारों में गर्भाधान प्रथम संस्कार होता है। इसमें भार्या के ऋतू स्नान से 16 दिन तक भार्या गर्भाधान के योग्य रहती है। इसके पश्चात भार्या के साथ रमण निष्फल होता है।भार्या के रजोदर्शन से 6 8 10 12 14 16 दिन में किया हुआ गर्भाधान  से पुत्र की प्राप्ति होती है। तथा 5 7 9 11 13,15 में किया हुआ गर्भाधान से पुत्री की प्राप्ति होती है।
इस प्रकार इन द्वादश दिवसों में गर्भाधान के शुभ मुहूर्त का इस प्रकार विचार करते हैं।

तिथि उभय पक्ष - 2,3,5,7,10,11,12,13 

वार - सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार 

नक्षत्र - रोहिणी, मृगशिरा, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, हस्त, स्वाति, अनुराधा, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा


इस प्रकार उक्त तिथि वार और नक्षत्र के योग पर गर्भाधान का मूहूर्त बनता है। इनमें किया गया रमन निष्फल नहीं होता है।


२,प्रसुति स्नान मुहूर्त -:

सूतिका स्नान जन्म से एक सप्ताह बाद ही शास्त्रों में अभिहीत बताया है।



तिथि - कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा ,2,3,5,7,10,11,13 (शु)15

वार - रविवार, मंगलवार, गुरुवार

नक्षत्र - अश्वनी, रोहिणी, मृगशिरा, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, हस्त, स्वाति, अनुराधा, रेवती

उक्त तिथि वार नक्षत्र के सहयोग में प्रसूति स्नान का शुभ मुहूर्त निर्माण होता है।

३, चूड़ाकर्म संस्कार (जडूला मुहूर्त),-

गर्भाधान या जन्म से 1,3,5,7,9 कुलाचार के अनुसार विषम वर्षों में सूर्य देव उत्तरायण में स्थित होने पर चूड़ा कर्म जडूला संस्कार संपन्न किया जाना चाहिए। इस संस्कार के अंतर्गत जातक का प्रथम बार मुंडन किया जाता है। इसलिए इसे मुंडन संस्कार भी कहा जाता है।

मास - माघ, फाल्गुन, चैत्र (मीन सक्रांति त्याज्य), वैसाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्व तक तक

तिथि - 2,3,5,7,10,11, 13

वार - सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार

नक्षत्र - मृगशिरा, रेवती, चित्रा, स्वाती, पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, हस्त, अश्विनी, पुष्य, ज्येष्ठा


इस प्रकार जातक का मुंडन संस्कार कुल रीति के अनुसार 1,3,5,7 विषम वर्षों में सूर्य देव के उत्तरायण होने के काल में उक्त तिथि वार नक्षत्र के सहयोग पर शुभ मुहूर्त का निर्माण होता है। जातक का जन्म मास व दक्षिणायन का काल सर्वथा त्याज्य होता है तथा उत्तरायण काल में चैत्र का महा जो कि मीन सक्रांति का होता है। वह भी सर्वथा त्याज्य बताया गया है। 


 नक्षत्रों में मुण्डन कराने का फल -:

नक्षत्र    -   फल
अश्विनी =तुष्टि

 भरणी =मृत्यु

 कृतिका =क्षय

 रोहिणी =रोगनाशक
 मृगशिरा= सौभाग्य
आर्द्रा =धनवान
 पुनर्वसु =पराक्रम
 पुष्य =धन व मान 
अश्लेषा = शरीर कष्ट
मघा= धन नाश
 पूर्वाफाल्गुनी = बहुरोग
 उत्तराफाल्गुनी =रोगनाश
 हस्त = तेज वृद्धि
 चित्रा = सौभाग्य
 स्वाति = दुःख नाश
 विशाखा=नाश
 अनुराधा = मित्र विरोध
 ज्येष्ठा = ऐश्वर्य नाश
 मूल = समूल नाश
पूर्वाषाढ़ा = समूल नाश
उत्तराषाढ़ा =शुभ
 श्रवण =सौंदर्य
घनिष्ठा =आयुवृद्धि
सतभिषा =बल वृद्धि
 पूर्वाभाद्रपद = मृत्यु
 उत्तराभाद्रपद = सुख
 रेवती =अति सुख



४, जलवा पूजन मुहूर्त -:

निम्न काल शुद्धि के उपरांत जनित्री को कुआं तालाब नदी पर जाकर अपनी कुलरीति के अनुसार जल  पूजन संपादित किया जाता है।

तिथि - 1, कृष्ण 2,3,5,7,10,11,13 शुक्ल

वार - सोमवार, बुधवार गुरुवार

नक्षत्र - श्रवण, पुनर्वसु, पुष्य, मृगशिरा, हस्त, मूल, अनुराधा


विशेष -
जलवा पूजन में श्राद्ध पक्ष, मलमास व अधिक मास, चैत्रमास, पौषमास, शुक्र गुरु अस्त काल को सर्वथा त्यागना चाहिए।



५, चूड़ा पहनना मुहूर्त -:


वार - रविवार बुधवार गुरुवार शुक्रवार

नक्षत्र - अश्वनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराधा, घनिष्ठा, रेवती

Note - मुहूर्त विवेचन व किसी भी प्रकार की ज्योतिषीय समस्या समाधान के लिए संपर्क करें।



एस्ट्रोलॉजर:

 आचार्य कोशल कुमार शास्त्री

 वैदिक ज्योतिष शोध संस्थान

 चौथ का बरवाड़ा, सवाई माधोपुर

 राजस्थान 9414 6572 45

एस्ट्रोलॉजर आचार्य केके शास्त्री




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