Vivah muhurt vichar-:
भारतीय सनातन आश्रम व्यवस्था में गृहस्थ आश्रम सर्वोत्कृष्ट आश्रम होता है। क्योंकि स्वरुप सृष्टि का प्रादुर्भाव पुरुष धारा व स्त्री धारा के संगम से ही सम्भव होता है। यह संपूर्ण सत्य है कि ईश्वर ने ही अपने स्वरूप को दो भागों में लंबवत विभक्त किया है जिसमें दाएं भाग से पुरुष धारा व बाय भाग से स्त्री धारा का प्रादुर्भाव हुआ है। तथा धीरे-धीरे इन स्त्री पुरुष की दोनों धाराओ ने एक विशाल जनसमूह को उत्पन्न किया है। इसी क्रम में अपने संस्कृति के विकास के साथ-साथ अपने समकक्ष प्रतिद्वंदी के साथ विवाह संस्कार की आवश्यकता अनुभूत की गई। अंततोगत्वा विवाह संस्कार का प्रादुर्भाव हुआ । इस प्रकार विवाह संस्कार ही ग्रस्त जीवन की आधारशिला सिद्ध होती है क्योंकि इसी से मानव देव ऋषि पित्र तीनों ऋण से उऋण होता है। अतः आज हम मुख्य रूप से विवाह मुहूर्त के निर्माण विषयक जानकारी प्राप्त करेंगे कि किस माह तिथि व वार को वर वधु के विवाह का मुहूर्त बनता है।
विवाह के मास -:
भारतीय मनीषियों ने विवाह के माह निर्धारण प्रसंग में कहा है कि जब सूर्य देव मिथुन कुंभ वृश्चिक वृष और मेष राशि में हो तो विवाह करना शुभ होता है।
माघ, फाल्गुन, बैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, और मार्गशीर्ष
आषाढ़ मास के प्रथम तृतीय अंश तक शुभ होता हैं। तथा मलमास में गुरु शुक्र अस्त काल में विवाह सर्वथा वर्जित होते हैं
विवाह की तिथि -:
विवाह मुहूर्त में सभी आचार्य शुक्ल पक्ष को श्रेष्ठ मानते हैं तथा कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि तक ले सकते हैं किंतु प्रचलन ऐसा है कि आजकल मात्र चतुर्दशी व अमावस्या को ही छोड़ा जाता है किंतु कम से कम रिक्ता तिथि 4, 9,14 और शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को तो छोड़ना चाहिए। बाकी सभी तिथियों में विवाह मुहूर्त बन जाता है। विवाह मुहूर्त में तिथियों को महत्व नहीं दिया गया है।
विवाह नक्षत्र -:
रेवती, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, मृगशिरा,मघा,मूल, अनुराधा, हस्त, स्वाति
उक्त नक्षत्र विवाह के लिए अति शुभ होते हैं।
वार -:
विवाह मुहूर्त में वार को अधिक महत्व नहीं दिया गया है तथापि सोमवार बुधवार गुरुवार व शुक्रवार अति शुभ होते हैं।
वर वरण मुहूर्त -:
जब प्रथम बार कन्या के लिए वर का चयन करके उस वर का तिलक करते हैं। जिसका मुहूर्त निम्न प्रकार से देखा जाता है।
नक्षत्र - पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद ,उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, कृतिका,रोहिणी
वार - सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार,
तिथि - रिक्ता तिथि 4,9,14, अमावस्या व शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को छोड़कर सभी तिथियां ग्राही होती है।
कन्या वरण मुहूर्त -:
नक्षत्र -
पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद , उत्तराफाल्गुनी,, उत्तराषाढा, उत्तराभाद्रपद,श्रवण, अनुराधा, स्वाति, घनिष्ठा, कृतिका, रेवती, रोहिणी, मूल, मृगशिरा,मघा, हस्त एवं वैवाहिक नक्षत्र शुभ होते हैं
वार - मंगलवार को छोड़कर सभी वार ग्राह्य होते हैं किंतु सोमवार बुधवार गुरुवार शुक्रवार अति शुभ होते हैं।
आचार्य कौशल कुमार शास्त्री
वैदिक ज्योतिष शोध संस्थान
चौथ का बरवाड़ा, सवाई माधोपुर
राजस्थान 9414 6572 45
Astrologer aacharya KK Shastri |
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