आपकी संतान कैसी होगी ?

  आपकी संतान कैसी होगी? क्या आपकी संतान  आपकी आज्ञाकारी होगी ?

नमस्कार साथियों !

आज हम आपके लिए ज्योतिष शास्त्र का एक अद्भुत सूत्र लेकर आए हैं। जिसके द्वारा हम सटीक संतान सुख के विषय में जान सकते हैं। हम जन्म कुंडली के पंचम भाव पर इस सूत्र को लगा कर  हमारी संतान हमारे लिए कैसी होगी? कैसा उनका आचरण होगा? कहीं वह हमारे कुल गौरव को कलंकित तो नहीं करेंगे? अथवा  हमारी संतान हमारे कुल गौरव को उन्नत शिखर तक पहुंचा पाएगी। आज इसी विषय को लेकर हम ज्योतिष शास्त्र के एक विशेष सूत्र के द्वारा संतान सुख के विषय में संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। वेदिक एस्ट्रोलॉजी के प्रणेता महर्षि पाराशर जी ने सप्तमांश सूत्र के द्वारा इसको जाने का बहुत ही सुंदर उपाय हमें दिया है।

सूत्र -:

 जैसा कि हम सब जानते हैं कि एक राशि 30 अंश की होती है। और एक ग्रह एक राशि पर 30 अंश चलता है। जब हम सप्तमांश में इसको डिवाइड करते हैं तो 30 को 7 से विभाजित करने पर 4 पॉइंट 17 आता है। और यही 4 पॉइंट 17 का जो अंक है। इसी के द्वारा हम जन्म कुंडली के पंचम भाव पर अप्लाई करके संतान सुख के विषय में जानेंगे। यद्यपि इस सप्तमांश सूत्र को हम जन्म कुंडली के द्वादश भाव में से किसी भी भाव पर लगा सकते हैं किंतु आज हम विशेषकर पंचम भाव पर इसको अप्लाई करके  जानेंगे। इसके अंतर्गत महर्षि पाराशर जी ने राशि के अंशों को 7 भागों में विभाजित किया है। यही सप्तमांश है। जिसमें प्रथम जो सप्तमांश है। उसको क्षार नाम दिया गया है। तो हम इन सप्तमांश के आधार पर संतान को सात केटेगरी में विभाजित करके इस सुत्र को अप्लाई करेंगे।

क्षार -:

यदि जन्म कुंडली में पंचम भाव का स्वामी जीरो से 4 पॉइंट 17 अंशों के मध्य हो अथवा पंचम भाव में विद्यमान ग्रह 4 पॉइंट 17 अंशों के बीच हो तो ऐसे जातक को क्षार कैटगरी की संतान के रूप में रखा जाता है। क्षार शब्द का अर्थ होता है साफ करना माजना अपने पूर्व जन्म के कर्मों को माजना अर्थात उनको भोगना होता है। अतः जिस भी व्यक्ति के जन्म कुंडली के पंचम भाव का स्वामी जीरो पॉइंट से 4 पॉइंट 17 के बीच में डिग्री ज्वाई हो अथवा पंचम भाव में विद्यमान ग्रह की डिग्री 0 से 4 पॉइंट 17 के मध्य हो ऐसी संतान से हमें हमारी पूर्व जन्म के कर्मों को का दंड भोगना होता है। हमारी संतान हमारा अपमान करेगी हमारा तिरस्कार करेगी हमें अनेक अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ेगा। हमें खून के आंसू रुलायेगी।

क्षीर -:


दूसरे सप्तमांश को क्षीर कहा जाता है अर्थात यदि जन्म कुंडली में पंचम भाव का स्वामी अथवा पंचम भाव में स्थित ग्रह 4.17 से 8.34  अंश के मध्य होता है। तो उसकी संतान क्षीर केटेगरी में आएगी।
 क्षीर का अर्थ दूध होता है और हम जानते हैं दूध पुष्टि कारक होता है लाभदायक होता है ताकत दायक होता है किंतु दूध के लिए हमें मेहनत करना पड़ता है परिश्रम करना पड़ता है। इससे स्पष्ट होता है कि आपकी जो संतान होगी उसके लिए आपको मेहनत करना पड़ेगा अर्थात उसको संस्कार देने पड़ेंगे। उसको सिखाना पड़ेगा। उसको अच्छी सोसाइटी देनी पड़ेगी और आप अच्छी सोसायटी अच्छे संस्कार और शिक्षा दिलाते हैं तो ऐसी संतान आपके नाम को रोशन करने वाली होगी आपको सुखदायक रहेगी। ऐसी संतान आपके दूध के कर्ज को  आपकी विपत्तियों को अपने ऊपर लेकर आपको संतुष्टि पुष्टि व संतुष्टि देते हैं।


दधि -:

तीसरे सप्तमांश को दधि की संज्ञा दी गई है। अर्थात जिस जातक की जन्म कुंडली में पंचमेश अथवा पंचम भाव में स्थिति ग्रह  की डिग्री 8 पॉइंट 34 से 12 पॉइंट 51 के मध्य हो तो उसकी संतान दधि सप्तमांश में अंतर्गत आती है। और हम जैसा कि जानते हैं कि दधि को प्राप्त करने के लिए हमें दूध को मथने की आवश्यकता होती है। अतः यदि हम हमारी संतान को हमारी संघर्षों से  हमारी धरातल से हमारी परिस्थितियों से समय-समय पर अवगत कराते रहते हैं उसे बोध कराते रहते हैं।  तो ऐसी संतान दधी के समान हमारे लिए पुष्टि कारक होती है। ताकत दायक होती है। सुखदायक होती है किंतु जिस प्रकार से संध्या के समय में यदि दधि को खाया जाए तो वह कालकूट विष के समान हो जाती है और  सुबह प्रातकल खाया जाए तो अमृत के समान होती है। अतः आप अपनी संतान को यदि संध्या के समय रात्रि के समय में शिक्षा देते हैं तो वह
 कालकूट विष के समान रहेगी। यदि आप अपने बालको को सुबह सिखाते हैं पढ़ाते हैं अपनी जीवन शैली से अवगत कराते हैं। अपने परिस्थितियों का बोध कराते हैं तो वह अमृत के समान बालक आगे चलकर के आपको संतुष्टि पुष्टि देने वाला होता है।


आज्य (धृत) -:

चतुर्थ सप्तमांश को आज्य अर्थात धृत की संज्ञा दी गई है। जिस प्रकार से घी को प्राप्त करने के लिए हमें दही को मथना होता है उसका शोधन करना होता है। तब जाकर  घी निकलता है। और घी पुष्टि दायक व ताकत देने वाला होता है। इसी प्रकार  यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में पंचमेश अथवा पंचम भाव में स्थित ग्रह है की डिग्री 12 पॉइंट 51 से 16 पॉइंट 8 के मध्य होती है तो वह धृत सप्तमांश के केटेगरी में आने वाली संतान होतीहै।और ऐसी संतान आपको मेहनत परिश्रम के द्वारा सुख पहुंचाने वाली, आपकी आज्ञाकारी व सभी प्रकार से आपके अनुकूल रहने वाली होती है। ऐसी संतान को श्रवण की संज्ञा दी जाती है।

इक्षु -:

पांचवी सप्तमांश को एक इक्षु की संज्ञा दी गई है। एक्षु का अर्थ होता है गन्ना। जिस प्रकार से हमें गन्ने का रस प्राप्त करने के लिए उसे मरोड़ना पड़ता है । उसके साथ स्ट्रगल करना पड़ता है उसी प्रकार से   जिनकी जन्म कुंडली में पंचमेश तथा पंचम भाव भाव में स्थित ग्रह की डिग्री 16 पॉइंट 8 से 21 पॉइंट 25 के मध्य हो तो वह इक्षु केटेगरी की संतान होती है। अतः ऐसी संतान को यदि अच्छी तरह से सिखाया जाए तो वह अनुकूल हो सकती है किंतु ऐसी संतान को यदि थोड़ा सा भी निगरानी से बाहर कर दिया जाए तो वह बिगड़ सकती है। आपक तिरस्कार कर सकती है। आप का मान भंग कर सकती है।



विष -:

सप्तमांश की छठी केटेगरी को विष की संज्ञा दी गई है। जिस प्रकार से भी विष मारक होता है। जन्म कुंडली में पंचम भाव का स्वामी या पंचम भाव में स्थित ग्रह की डिग्री 21 पॉइंट 25 से25.42 के मध्य  हो तो उसकी संता न संस्कार हीन होती है। वह एक दिन दुर्योधन कंसकर बनकर रावण बनकर हमारे परिवार को कलंकित करने वाली नाश करने वाली सिद्ध होती है। अतः ऐसी संतान को पहले से ही संस्कारित बनाने का हमें उचित प्रयास करते रहना चाहिए।


शुद्ध जल -:

अंतिम सप्तमांश को शुद्ध जल की संज्ञा दी जाती है। जिस प्रकार से शुद्ध जल पवित्र होता है सरल होता है स्वच्छ होत है।
 उसी प्रकार से जिस की जन्म कुंडली में पंचम भाव में विद्यमान ग्रह तथा पंचम भाव के स्वामी की ग्रह के अंश 25 पॉइंट 42 से 30 अंश तक हो तो वह शुद्ध जल केटेगरी कि सप्तमांश की संतान मानी जाती है। और ऐसी संतान  निश्चल सरल हृदय मात-पिता का आज्ञाकारी व बिल्कुल पवित्र आत्मा पुण्यात्मा आपके कुल गौरव को बढ़ाने वाला दिव्य आत्मा होती है।



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एस्ट्रोलॉजर आचार्य केके शास्त्री 
वैदिक ज्योतिष शोध संस्थान 
चौथ का बरवाड़ा सवाई माधोपुर 
राजस्थान 9414 6572 45



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