वक्री ग्रह ?( वक्री ग्रह का क्या अर्थ होता है?)

 वक्री ग्रह की संपूर्ण जानकारी -:

नमस्कार साथियों !
आज हम एक ऐसे विशिष्ट विषय को लेकर चर्चा करने जा रहे हैं जो कि आज के समय में काफी चर्चित विषय हैं। जिसको लेकर सोशल मीडिया के अन्यान्य प्लेटफार्म पर काफी चर्चा होती है। जिसके नाम से लोगो के हृदय में डर बैठ जाता है। जी हां हम बात कर रहे हैं वक्री ग्रह की, क्योंकि आज की ज्योतिषी चर्चा में वक्री ग्रह की चर्चा काफी हद तक प्रचलित हो रही है। सामान्यतः प्रत्येक दो-तीन जातक के अनुपात से जातक की जन्मकुंडली में एक या दो ग्रह निश्चित रूप से वक्री अवश्य होते हैं। अथवा गोचर में ग्रहो का वक्री पन चलता रहता है। अतः जब भी हमारी राशि के गोचर में किसी ग्रह का वक्री होना देखते तो उसको देख कर  हमारे मन में एक विशेष डर बैठ जाता है। तो आज हम इस विषय को लेकर के चर्चा को गति प्रदान करते हैं।

वक्री ग्रह -:


वक्री शब्द का सामान्य अर्थ टेढ़ा पन होता है जिसका ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की गति के अकॉर्डिंग अर्थ लगाया जाता है कि ग्रह अपने स्वभाविक गति को छोड़कर विपरीत में गति करता है। उसे ग्रह की वक्री गति कहते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि प्रत्येक  ग्रह राहु और केतु को छोड़कर सभी ग्रह आगे की ओर गति करते हैं। जैसे कोई ग्रह  मेष राशि में  वर्तमान में गोचर कर रहा तो आने वाले टाइम में वर्षभ राशि में गोचर करेगा। यह ग्रहों की सामान्य चाल का सिद्धांत होता है। जबकि राहु और केतु सदैव उल्टी चाल से गति करते हैं। यदि राहु केतु मेष राशि में अभी गोचर कर रहे हैं तो आने वाले टाइम में हो मीन राशि में गोचर करेंगे। और कोई भी ग्रह अपने इस गति के सिद्धांत में किसी भी कंडीशन में कोई परिवर्तन नहीं करता है। फिर भी सामान्यतः हम सुनते हैं कि जब वक्री ग्रह की बात आती है तो हम कहते हैं कि ग्रह अपनी गति के सिद्धांत को छोड़कर  विपरीत दिशा अर्थात पीछे की ओर मुंव कर गया?
इसी को हम सुक्ष्मता से समझते हैं।
जैसा कि हम सब जानते हैं कि प्रत्येक ग्रह सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं और ग्रहों का गति मार्ग होता है वह अंडाकार होता है। अर्थात प्रत्येक ग्रह 360-degree में घूमते हैं। इसलिए जब सूर्य और चंद्रमा को छोड़ कर  मंगल बुध बृहस्पति शुक्र और शनि ये ग्रह भ्रमण करते हुए जब पृथ्वी के अति निकट आ जाते हैं। उस समय इन ग्रहों की गति स्लो हो जाती है पृथ्वी की गति बढ़ जाती है। जिससे
 पृथ्वी आगे बढ़ जाती है और ग्रह ठहर से जाते हैं
 जिससे हमें प्रतीत होता है कि वह ग्रह पीछे की ओर मुंव कर गया। जबकि यह सत्य नहीं है।यह एक आभासी  भ्रम होता है। अतः जब ग्रह पृथ्वी के निकट आते हैं उस समय यह वक्री कहलाते हैं क्योंकि इस समय पृथ्वी और उस ग्रह की गति में काफी अंतर आ जाता है।
 उस ग्रह की गति कम हो जाती है पृथ्वी की गति अधिक बढ़ जाती है कुछ समय के लिए वहां ठहर जाता है इसे ही वक्र कहा जाता है।इसे हम लॉजिकल भी समझ सकते हैं। जैसे ट्रैफिक में हम बाइक चलाते होते हैं और जब हमारी बाइक की गति हम स्लौ करते हैं तो हमारे पीछे या साथ में चलने वाले जो अन्य  साधन होते हैं। वो हमस आगे चले जाते हैं और जब वो आगे जाकर पीछे देखते हैं तो हमारी बाइक उनको लगेगी कि हम पीछे की ओर जा रहे हैं

 जबकि हम पीछे की ओर जारे नहीं होते हैं। बाकी जो हम से आगे निकल चुके होते हैं। उनको लगता कि हम पीछे जा रहे हैं।
निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि जब ग्रह  पृथ्वी के निकट आते हैं तो उनकी गति स्लो हो जाती है और पृथ्वी की गति तेज होती है।  ग्रहों की गति का मार्ग अंडाकार होता है तो  ऐसा आभास लगता है कि ग्रह पीछे की ओर जा रहा होता है। जबकि ऐसा नहीं होता है। यह मात्र एक आभासी भ्रम होता है।

 वक्री ग्रह के फल के विषय में विद्वानों के मत -:

साथियों! जैसा कि अभी हमने वक्री ग्रह को परिभाषित किया और जाना कि सूर्य और चंद्रमा को छोड़कर मंगल बुध गुरु शुक्र और शनि जब पृथ्वी के निकट आते हैं तो  हमें वक्री आभस
  होता है। आता जब कोई ग्रह वक्री होता है तो उसके फल के विषय में ज्योतिषी विद्वानों के अलग-अलग मतभेद है विद्वानों का एक समूह कहता है कि जब ग्रह वक्री होता है तो उसके फलों में अंतर आ जाता है। यदि वक्री होने वाला ग्रह  मारक है तो वह सुफल देने वाला होगा और यदि योगकारक है तो मारक फल देने वाला होगा। उनका मानना है कि वक्री ग्रहकोअपने स्वभाव के विपरीत परिणाम देने वाला मानते हैं। कुछ विद्वान वक्री ग्रह को उच्च राशि के समान फल देने वाला मानते हैं।


हमारा मत -:

जैसा कि अभी हमने जाना कि वक्री ग्रह के फलों को लेकर के विद्वानों के अलग-अलग मत है। लेकिन अब हम हमारे मत को आपके सामने रखते हैं जैसा कि अब तक हमने सीखा है या विद्वान लोग के मतों को पढ़ा है उसके अकोडिंग हमारा मानना होता है कि ग्रह जबभी  वक्री होता है तो वह अपने नैसर्गिक स्वभाव के अनुकूल तीन गुना फल देने वाला हो जाता है। यदि वक्री होने वाला ग्रह आपकी जन्मकुंडली में मारक है तो उसकी मारक क्षमता  3 गुना बढ़ आएगी। यदि वह योगकारक है तो अपने योगकारक फलों में 3 गुना वृद्धि करने वाला होग। क्योंकि इसका कारण होता है कि जब ग्रह किसी राशि में ज्यादा समय के लिए रुकेगा तो वहां उसको चेस्टा बल प्राप्त होता है। जिससे वह ग्रह अपने स्वभाव के अनुसार जातक को सामान्य फलों के अपेक्षा 3 गुना फलों में वृद्धि करता है। चाहे वह योगकारक हो या मारक हो यदि मारक है तो मारकता बढ़ाएगा और  योगकारक है तो योग कारक फलों में वृद्धि करेगा।


इसको हम लॉजिकल समझने का प्रयास करते हैं। जैसा कि हमने जाना कि जब ग्रह पृथ्वी के निकट आ जाता है तो वह वक्री कहलाता है। अतः जब ग्रह पृथ्वी के निकट आएगा तो उसकी किरणें पृथ्वी पर अति निकटता के साथ आएगी क्योंकि निकट आने से उसका जो आकार होता है  उसकी किरणें भी पृथ्वी पर बहुत अधिक शत प्रतिशत मात्रा में हम तक पहुंचेगी। जिससे उस ग्रहों की किरणों से प्राप्त होने वाले जो हमारे फल होते हैं। उनमें  वृद्धि होना स्वभाविक हो जाता है। दूसरा जब ग्रह किस स्थान पर सामान्य से ज्यादा समय के लिए रुकेगा तो वहां उसके फलो में वृद्धि करना स्वभाविक होता है।

अतः वक्री होने का मतलब कतई नहीं है कि उसके फल भी नेगेटिव होंगे।तह हमारी गलत धारणा है। ग्रह का जैसा नैसर्गिक स्वभाव उसी का अकोटिंग फल देगा बाकी वह अपने फलों में 3 गुना वृद्धि अवश्य करेगा क्योंकि वहां एक तो लंबे समय तक रुकता है। दूसरा पृथ्वी के निकट होने से उसकी रस्मियां हमारे जीवन में शत-प्रतिशत पहुंचती है तो उसके फलों में वर्दी प्राप्त होती है उसे चेस्टा बल यहां प्राप्त होता है।



अतः वक्री ग्रह को हमने आज समझने का प्रयास किया।


 सभी को श्री राधे राधे


एस्ट्रोलॉजर आचार्य केके शास्त्री
 वेदिक ज्योतिष शोध संस्थान
 चौथ का बरवाड़ा सवाई माधोपुर रा
9414 65 45
आचार्य केके शास्त्री


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