भाग्य वर्धक योग विचार -:
ज्योतिष शास्त्र में असंख्य योग होते हैं फिर भी आज की चर्चा में हम मुख्य रूप से भाग्य उदय योगों के बारे में जानेंगे अर्थात आज हम जानेंगे की कौन-कौन से योग हमारे भाग्य वर्धक होते हैं।
१, यदि नवम घर का स्वामी ग्यारहवें भाव में और ग्यारहवें भाव का स्वामी नवे भाव में हो अथवा नवे अथवा 11 भाव का किसी प्रकार से संबंध बन रहा हो तो जातक के लिए बहुत ही भाग्य वर्धक योग का निर्माण करते हैं।
२, यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में एक राशि में 2 ग्रह विद्यमान हो इसी प्रकार से कुल मिलाकर 4 राशियों में दो-दो ग्रह विद्यमान होते हैं तो ऐसे जातक भाग्य का धनी होता है।
३, कोई भी ग्रह पंचम व नवम भाव में उच्च का होकर विद्यमान हो तो भाग वर्धक योग का निर्माण होता है।
४, नवम घर का स्वामी और सूर्य दोनों एक साथ युति बनाकर द्वादश भाव में विद्यमान हो तो यह योग जातक के लिए भाग्यशाली होता है।
५, सूर्य यदि मेष राशि में होता है तो जातक के पिता के भाग्य वर्धक होता है और सूर्य तुला राशि में हो तो पिता के भाग्य की हानि करने वाला होता है।
६, शुक्र किसी जातक की जन्म कुंडली के बारहवें भाव विद्यमान हो तो उस जातक का भाग्य पत्नी के द्वारा होता है।
७, केतु तीसरे भाव में सदैव योग कारक होता है नवम पंचम भाव में सदैव दोष कारक होता है।
८, सामान्यतः नवम घर का मालिक आठवें भाव में हो तो उसकी दशा सदैव मारक फल देने वाली होती है किंतु यदि नवम भाव का स्वामी बृहस्पति हो और वह आठवें भाव में विद्यमान हो तभी उसकी दशा सदैव जातक को शुभ परिणाम देने वाली होग।
९, शनि सप्तम भाव विद्यमान हो तो उसकी दशा में निश्चित रूप से एक बहुत बड़ा राज योग बनता है।
१०, सनी देव नवम भाव व तीसरे भाव में भी सदैव शुभ फल देने वाले होते हैं।
एस्ट्रोलॉजर आचार्य केके शास्त्री
वैदिक ज्योतिष शोध संस्थान
चौथ का बरवाड़ा, सवाई माधोपुर
राजस्थान 9414 6572 45
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