विपरीत राजयोग

 विपरित राज़ योग -:

नमस्कार साथियों !
आज की ज्योतिष चर्चा के अंतर्गत हम एक विशिष्ट योग की चर्चा कर रहे हैं जिसका नाम है विपरीत राजयोग अर्थात आज हम विपरीत राजयोग किस प्रकार से बनता है और कैसे  हमारे जीवन को उत्कृष्ट कर बुलंदियों तक पहुंचाने में सहायक होता है?
जैसा कि नाम से विदित है विपरीत राजयोग अर्थात जो विपरीत परिस्थितियों में भी हमें राजयोग का फल देने वाला हो उसे विपरीत राजयोग कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र में विपरीत राजयोग की सभी विद्वानों ने चर्चा की है। तो आइए आज हम इसी विपरीत राजयोग के विषय में जानते हैं। ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है कि जन्म कुंडली के त्रिक भाव के स्वामी अर्थात 6 8 12 भाव के स्वामी में से कोई भी 6 8 12 में विद्यमान हो और लग्नेश बलवान हो तथा 6 8 12 का स्वामी लग्न को देख रहा हो ऊपर से उन पर शुभ  ग्रहों की दृष्टि नहीं हो तो उत्कृष्ट कोटि का विपरीत राजयोग बनता है। इसको हम लॉजिकल समझते हैं। 6 8 12  जन्म कुंडली के सबसे बुरे भाव होते हैं इनको त्रिक भाव कहा जाता है। अतः इन भाव के स्वामी पापी अथवा मारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं। इसलिए इनका फल सदैव जातक के जीवन में मारक व अशुभ होता है। ये अपनी दशा अंतर्दशा में जातक को काफी परेशानियां और कष्ट पहुंचाते हैं। किंतु विशेष कंडीशन में यह विपरीत राजयोग बनाकर  जातक को कष्ट व दुखों के स्थान पर राजयोग तुल्य श्रेष्ठ फल देने वाले भी हो जाते हैं। इसे ही विपरीत राजयोग कहा जाता है।

अब यह कैसे बनता है इसको समझते हैं -
इसके लिए कहा गया है कि छठे भाव का स्वामी 8,12 में विद्यमान हो आठवें भाव का स्वामी 6,12 में विद्यमान हो अथवा 12वे भाव का स्वामी छठे आठवे में विद्यमान हो तथा इन तीनों भाव के स्वामीयो में से एक भी लगन को देखता हो तो विपरीत राजयोग बनता है। जिन जातकों की जन्म कुंडली विपरीत राजयोग का निर्माण होता है वे जीवन में ख्याति प्राप्त करने वाले होते हैं। इंदिरा विक्टोरिया अमिताभ बच्चन इत्यादि ने विपरीत राजयोग की वजह से जीवन में बहुत कुछ प्राप्त किया है।



आचार्य केके शास्त्री
 वैदक ज्योतिष संस्थान
 चौथ का बरवाड़ा सवाई माधोपुर रा
9414657245


Post a Comment

0 Comments