पितृपक्ष का महत्व -:
पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष हिंदू धर्म में पूर्वजों को समर्पित एक महत्वपूर्ण अवधि है, जिसमें हम अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान जैसे अनुष्ठान करते हैं। वर्ष 2024 में यह अवधि 17 सितंबर से 1 अक्टूबर तक रहेगी। पितृ पक्ष में 16 दिन होते हैं, जिन्हें श्राद्ध के 16 दिन भी कहा जाता है। यह हिंदू पंचांग के भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक चलता है।
पितृ पक्ष का महत्व
1. पूर्वजों की तृप्ति:
पितृ पक्ष में किए गए श्राद्ध कर्म से हमारे पूर्वज तृप्त होते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है। यह कहा जाता है कि जो व्यक्ति पितरों का श्राद्ध करता है, उसे उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और शांति प्राप्त होती है।
2. धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण:-
हिंदू धर्म में माना जाता है कि मनुष्य का जीवन तीन ऋणों से बंधा होता है—देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। श्राद्ध और तर्पण के माध्यम से हम पितृ ऋण को चुकाते हैं। इसके बिना हमारा जीवन अधूरा माना जाता है।
3. कर्म और पुनर्जन्म -'
यह भी मान्यता है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से हमारे कर्म दोषों का निवारण होता है और पितृदोष समाप्त होता है। इसके अलावा, पितरों की कृपा से व्यक्ति को जीवन के बाद के पुनर्जन्मों में अच्छे कर्मों का फल प्राप्त होता है।
4. पितरों की आशीर्वाद -:
जो लोग श्राद्ध नहीं करते, उनके परिवार में पितृदोष हो सकता है, जो जीवन में विभिन्न समस्याओं का कारण बन सकता है। वहीं, पितरों की संतुष्टि और आशीर्वाद से वंश वृद्धि, आर्थिक उन्नति, स्वास्थ्य लाभ और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।
श्राद्ध की प्रक्रिया
श्राद्ध के दौरान विशेष मंत्रों के साथ तर्पण, पिंडदान, और ब्राह्मण भोजन कराने की प्रथा होती है। इसमें विशेष ध्यान दिया जाता है कि यह कर्म विधि-विधान से संपन्न हो। श्राद्ध में काले तिल, जौ, कुश, और पानी का उपयोग किया जाता है। विशेष दिन, जैसे पिता के लिए अमावस्या, माता के लिए नवमी, और अन्य पूर्वजों के लिए तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है।
पितृ पक्ष का पालन -:
- इस अवधि में शुभ कार्य, जैसे विवाह, गृह प्रवेश, या कोई मांगलिक कार्य नहीं किए जाते।
- सात्विक भोजन का पालन किया जाता है और ब्राह्मणों को भोजन कराना अति पुण्यकारी माना जाता है।
पितृ पक्ष के आखिरी दिन का महत्व
पितृ पक्ष की अमावस्या, जिसे **महालय अमावस्या** भी कहते हैं, विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती है। यह दिन उन लोगों के लिए श्राद्ध करने का है, जिनकी तिथि ज्ञात नहीं होती या जो किसी कारणवश श्राद्ध नहीं कर सकते।
पितृ पक्ष हमारे जीवन और पूर्वजों से जुड़े कर्तव्यों को निभाने का एक पवित्र समय है, जो हमारे संस्कारों और परंपराओं का अटूट हिस्सा है।
पितृ पक्ष का महत्व महाभारत कर्ण पसंग से -:
पितृपक्ष की कहानी महाभारत से जुड़ी हुई है और इसमें मुख्य रूप से कर्ण का प्रसंग आता है। पितृपक्ष को पितरों का तर्पण करने का विशेष समय माना जाता है, जिसमें हम अपने पूर्वजों को जल अर्पित करके उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।
महाभारत के अनुसार, कर्ण एक महान योद्धा थे, लेकिन उनका जीवन अधिकतर समय संघर्षों में बीता। कर्ण दानवीर थे, वे हमेशा जरूरतमंदों को दान देते थे, चाहे वह कुछ भी हो। लेकिन जब उनकी मृत्यु हुई और उनकी आत्मा स्वर्ग पहुंची, तो उन्हें वहां भोजन के स्थान पर सोने और आभूषण दिए गए। कर्ण ने पूछा कि उन्हें भोजन क्यों नहीं दिया जा रहा, तब उन्हें यह बताया गया कि उन्होंने अपने पूरे जीवन में बहुत दान किया, लेकिन उन्होंने कभी अपने पूर्वजों को अर्पण या तर्पण नहीं किया। कर्ण को यह ज्ञात नहीं था कि उनके असली माता-पिता कौन हैं, इसलिए उन्होंने कभी पितरों के लिए तर्पण नहीं किया था।
कर्ण ने भगवान यम से इस त्रुटि को सुधारने का अनुरोध किया। भगवान यम ने उन्हें 16 दिनों के लिए पृथ्वी पर वापस जाने का अवसर दिया ताकि वे अपने पूर्वजों के लिए तर्पण कर सकें। यही 16 दिन "पितृपक्ष" के नाम से जाने जाते हैं। इस अवधि के दौरान, हिंदू धर्म के अनुयायी अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म और तर्पण करते हैं।
पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण करने से माना जाता है कि पूर्वजों की आत्माएं तृप्त होती हैं और आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
आचार्य के केशास्त्री
9414657245
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