श्राद्ध कर्म का सक्षेप परिचय -:
श्राद्ध कर्म का वर्णन वेद, स्मृति, पुराण और धर्मशास्त्रों में विस्तारपूर्वक किया गया है। यह कर्म पितृऋण की निवृत्ति और पितरों की शांति एवं तृप्ति के लिए किया जाता है। इसका महत्व, विधि और तत्त्वज्ञान इस प्रकार है –
१. श्राद्ध कर्म का महत्व
- श्राद्ध शब्द "श्रद्धा" से बना है, जिसका अर्थ है श्रद्धापूर्वक किया गया कर्म।
- मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण बताए गए हैं – देवऋण, ऋषिऋण और पितृऋण।
- पितरों का स्मरण, तर्पण और अर्पण करके पितृऋण की निवृत्ति होती है।
- इससे पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं और परिवार में सुख, समृद्धि, संतान और आयुष्य की वृद्धि होती है।
- गीता, मनुस्मृति, गरुड़ पुराण और धर्मसिन्धु आदि ग्रंथों में श्राद्ध का माहात्म्य विस्तृत है।
२. श्राद्ध कर्म के समय
- वार्षिक श्राद्ध – मृत्यु तिथि पर प्रतिवर्ष किया जाता है।
- पक्ष श्राद्ध (पितृपक्ष) – भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक १६ दिन पितृपक्ष कहलाते हैं, इसमें प्रत्येक तिथि का श्राद्ध होता है।
- नित्य श्राद्ध – दैनिक तर्पण।
- एकादश, द्वादश, मासिक, सप्तमिक, त्रिपक्षीय श्राद्ध आदि विभिन्न प्रकार।
३. श्राद्ध कर्म की पात्रता
- पुत्र मुख्य कर्ता है, परंतु पुत्र न होने पर पौत्र, प्रपौत्र, पत्नी, भाई, भतीजा, अथवा अन्य संबंधी भी कर सकते हैं।
- आवश्यकता पड़ने पर ब्राह्मण भी नियुक्त हो सकते हैं।
४. श्राद्ध की मुख्य विधि
(क) पूर्व तैयारी
- शुद्ध स्नान करके, श्वेत वस्त्र धारण करना।
- पितरों के नाम से आसन, अर्घ्य और आह्वान की तैयारी।
- कुश, तिल, जल, पिंड (चावल, तिल, घृत, शहद से बने) तैयार करना।
- ब्राह्मणों का निमंत्रण।
(ख) मुख्य विधि
- आवाहन – पितरों का ध्यान और आह्वान।
- आसन, अर्घ्य, पाद्य, आचमन – पितरों को मानो अतिथि स्वरूप मानकर सब अर्पण करना।
- पिंडदान – चावल, तिल, घृत, शहद से बने पिंड पितरों को अर्पित करना।
- तर्पण – जल और तिल अर्पित करके पितरों को तृप्त करना।
- होम (यदि सम्भव हो) – अग्नि में आहुति।
- ब्राह्मण भोजन व दक्षिणा – पितरों के प्रतिनिधि रूप में ब्राह्मण को भोजन व दान देना।
- पितृस्तुति व आशीर्वाद ग्रहण – अंत में पितरों की प्रार्थना।
(ग) निषेध
- श्राद्ध दिन मद्य, मांस, क्रोध, असत्य, परनिंदा, अनादर व अनाचार वर्जित हैं।
- शुद्ध आचरण और श्रद्धा प्रधान है।
५. श्राद्ध में अर्पित वस्तुएँ
- जल – तृप्ति हेतु।
- तिल – पितृदोष निवारण हेतु।
- कुश – पवित्रता और संकल्प हेतु।
- पिंड – देह धारण की कामना हेतु।
- वस्त्र, भोजन, दक्षिणा – संतोष हेतु।
६. श्राद्ध का तात्त्विक पक्ष
- पितर केवल भौतिक शरीर से नहीं, सूक्ष्म शरीर से तृप्त होते हैं।
- यह कर्म श्रद्धा, संकल्प और भावना पर आधारित है।
- इससे आत्मिक, दैहिक और पारिवारिक शांति मिलती है।
- मनुष्य का वंश परंपरा से जुड़ाव और पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता का स्मरण होता है।
७. श्राद्ध के विशेष प्रकार
- मातामह श्राद्ध – ननिहाल पक्ष के पितरों के लिए।
- गोष्ठी श्राद्ध – अनेक लोगों द्वारा संयुक्त श्राद्ध।
- सपिण्डीकरण श्राद्ध – मृत्यु के बारहवें मास में, पितरों में सम्मिलित करने हेतु।
- हिरण्यश्राद्ध – अन्न के स्थान पर धन अर्पण करना।
- पार्वण श्राद्ध – पितृपक्ष में किया जाने वाला मुख्य श्राद्ध।
८. फल
- पितर संतुष्ट होकर वंश वृद्धि, आरोग्य, धन, ज्ञान और दीर्घायु का आशीर्वाद देते हैं।
- शास्त्र में कहा गया है –
“पितृभ्यो दत्तं यद्यन्न श्राद्धे तृप्यन्ति पितरः सदा।”
अर्थात श्रद्धा से दिया गया अन्न पितरों को तृप्त करता है।
पितृपक्ष की १६ श्राद्ध तिथियों का दिन- में प्रत्येक तिथि का अपना महत्व है और उस पर विशेष श्राद्ध करने का विधान है –
पितृपक्ष के १६ श्राद्ध तिथि-क्रम
१. प्रतिपदा श्राद्ध
- इस दिन बाल्यावस्था (बच्चों) में दिवंगत हुए पितरों का श्राद्ध किया जाता है।
२. द्वितीया श्राद्ध
- अकाल मृत्यु (अकस्मात मृत्यु) को प्राप्त आत्माओं के लिए।
३. तृतीया श्राद्ध
- तपस्वी, ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ तथा संन्यासियों का श्राद्ध।
४. चतुर्थी श्राद्ध
- दुर्घटना, आयुध, युद्ध, सर्पदंश आदि से मरे हुए व्यक्तियों का श्राद्ध।
५. पंचमी श्राद्ध
- कन्या या कुमारियों का श्राद्ध।
६. षष्ठी श्राद्ध
- बालक-बालिकाओं तथा अविवाहित युवकों का श्राद्ध।
७. सप्तमी श्राद्ध
- युवावस्था में अकाल मृत्यु को प्राप्त व्यक्तियों का श्राद्ध।
८. अष्टमी श्राद्ध
- स्त्रियों का श्राद्ध विशेष रूप से इस दिन किया जाता है।
९. नवमी श्राद्ध
- विधवाओं तथा स्त्रियों का प्रमुख श्राद्ध इसी तिथि को किया जाता है।
- इसे “आविदवा नवमी” भी कहते हैं।
१०. दशमी श्राद्ध
- जिनका निधन संन्यास, वन या यात्रा में हुआ हो।
११. एकादशी श्राद्ध
- धर्मनिष्ठ, ब्रह्मचारी तथा व्रतशील लोगों का श्राद्ध।
१२. द्वादशी श्राद्ध
- अल्पायु में दिवंगत व्यक्तियों का श्राद्ध।
१३. त्रयोदशी श्राद्ध
- जिनकी मृत्यु दुर्घटना, हत्या या शस्त्रादि से हुई हो।
१४. चतुर्दशी श्राद्ध
- युद्ध, शस्त्र, दैवीय आपदा, आत्महत्या से मृत लोगों का श्राद्ध।
- इसे घटश्राद्ध या चौरासी श्राद्ध भी कहते हैं।
१५. अमावस्या (सर्वपितृ अमावस्या)
- यह पितृपक्ष का सबसे महत्वपूर्ण दिन है।
- इस दिन जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात न हो, अथवा किसी कारणवश अन्य दिनों में श्राद्ध न कर पाए हों, उनका श्राद्ध किया जाता है।
- इसे “सर्वपितृ श्राद्ध” कहते हैं।
विशेष ध्यान रखने योग्य बातें
- यदि किसी को अपने पितर की मृत्यु तिथि ज्ञात हो, तो उसी तिथि पर श्राद्ध करना उत्तम है।
- यदि तिथि ज्ञात न हो, तो अमावस्या (सर्वपितृ अमावस्या) पर करना चाहिए।
- स्त्रियों का विशेष श्राद्ध नवमी तिथि को करना चाहिए।
- अकाल मृत (दुर्घटनाग्रस्त, शस्त्रादि से मरे हुए) का श्राद्ध चतुर्दशी को होता है।
पितृपक्ष 2025: आरंभ और समापन तिथियाँ
- प्रारम्भ: भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा तिथि — 7 सितंबर 2025 (रविवार) से पितृपक्ष आरंभ होगा, जिसे महालयारम्भ भी कहा जाता है।
- समापन: आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या — 21 सितंबर 2025 (रविवार) को पितृपक्ष समाप्त होगा, जिसे सर्वपितृ अमावस्या या महालया अमावस्या कहते हैं।
समग्र रूप से यह अवधि 16-दिवसीय तीर्थकाल माना जाता है जिसमें श्राद्ध, पिंडदान, तर्पण आदि धार्मिक कर्म करने का महत्व विशेष होता है।
पितृपक्ष 2025 — दिन-प्रतिदिन श्राद्ध तिथियाँ
हमने विश्वसनीय स्रोतों से प्रत्येक तिथि के विवरण संकलित किए हैं:
तिथि | दिन | तिथि विवरण |
---|---|---|
पूर्णिमा श्राद्ध | 7 सितम्बर | भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा |
प्रतिपदा श्राद्ध | 8 सितम्बर | आश्विन कृष्ण प्रतिपदा |
द्वितीया श्राद्ध | 9 सितम्बर | आश्विन कृष्ण द्वितीया |
तृतीया श्राद्ध | 10 सितम्बर | आश्विन कृष्ण तृतीया |
चतुर्थी श्राद्ध | 11 सितम्बर | आश्विन कृष्ण चतुर्थी |
पंचमी श्राद्ध | 12 सितम्बर | आश्विन कृष्ण पंचमी |
षष्ठी श्राद्ध | 13 सितम्बर | आश्विन कृष्ण षष्ठी |
सप्तमी श्राद्ध | 14 सितम्बर | आश्विन कृष्ण सप्तमी |
अष्टमी श्राद्ध | 15 सितम्बर | आश्विन कृष्ण अष्टमी |
नवमी श्राद्ध | 16 सितम्बर | आश्विन कृष्ण नवमी |
दशमी श्राद्ध | 17 सितम्बर | आश्विन कृष्ण दशमी |
एकादशी श्राद्ध | 18 सितम्बर | आश्विन कृष्ण एकादशी |
द्वादशी श्राद्ध | 19 सितम्बर | आश्विन कृष्ण द्वादशी |
त्रयोदशी श्राद्ध | 20 सितम्बर | आश्विन कृष्ण त्रयोदशी |
सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध | 21 सितम्बर | आश्विन कृष्ण अमावस्या (महालया) |
विशेष दिन
- नवमी श्राद्ध (15 सितम्बर) को दिवंगत माताओं का श्राद्ध (Matra Navami) स्वास्थ्य और विधिक परंपरा अनुसार किया जाता है।
- द्वितीया श्राद्ध (9 सितम्बर) को अकस्मात निधन, विशेष मृत्यु तिथियों के अनुसार श्राद्ध की परंपरा का विशेष महत्व है
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