करवा चौथ व्रत

करवा चौथ व्रत कथा -:


करवा चौथ का महत्व :

करवा चौथ हिन्दू धर्म में विवाहित स्त्रियों के लिए एक अत्यंत पवित्र और शुभ व्रत है। यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएँ अपने पति की दीर्घायु, सुख, समृद्धि और अखंड सौभाग्य की कामना से निर्जला उपवास रखती हैं।

“करवा” का अर्थ है मिट्टी का घड़ा (करवा) — जो जल का प्रतीक है, और “चौथ” का अर्थ है चतुर्थी तिथि। अतः इस दिन जल से भरे करवे का विशेष महत्व होता है।

 धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से:

  1. करवा चौथ का व्रत सुहागिन स्त्रियों के सौभाग्यवृद्धि का प्रतीक है।
  2. यह विश्वास, प्रेम और समर्पण का उत्सव है जो पति-पत्नी के बीच के संबंध को और गहरा करता है।
  3. इस दिन चंद्रमा की पूजा करके स्त्रियाँ चंद्रदेव से अपने पति की आयु बढ़ाने का आशीर्वाद माँगती हैं।

करवा चौथ की व्रत कथा :

एक समय की बात है — वीरावती नामक एक परम सुंदर, सुशील और धर्मपरायण कन्या थी। उसका विवाह एक राजकुमार से हुआ। विवाह के बाद जब पहली बार करवा चौथ का व्रत आया, तो वह अपने मायके में थी। उसने अपनी माँ और सखियों के साथ व्रत रखा, लेकिन दिनभर भूखी-प्यासी रहने के कारण उसे बहुत अधिक कमजोरी महसूस होने लगी।

रात को जब चाँद नहीं निकला था, तब वह बहुत बेचैन हो उठी। अपने भाइयों से यह देखा न गया, तो उन्होंने बहन को परेशान देखकर एक पेड़ के नीचे छल से दीपक रख दिया, जिससे ऐसा प्रतीत हुआ कि चंद्रमा निकल आया है।

वीरावती ने उस झूठे चाँद को देखकर अर्घ्य दिया और व्रत खोल लिया। कुछ ही समय बाद उसके पति बीमार पड़ गए और बेहोश हो गए। यह देखकर वह अत्यंत दुखी हुई। तब किसी साध्वी स्त्री ने उसे बताया कि उसने झूठा चाँद देखकर व्रत तोड़ा था, जिसके कारण यह अशुभ परिणाम आया है।

उसने पछताकर पुनः पूरे विधि-विधान से करवा चौथ का व्रत किया, और तब जाकर उसके पति स्वस्थ हो उठे।

तब से यह परंपरा चली आ रही है कि स्त्रियाँ इस दिन पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ व्रत रखती हैं, चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं, और अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं।


व्रत की विधि संक्षेप में :

  1. सुबह सरगी खाई जाती है (सास द्वारा दी गई थाली)।
  2. दिनभर निर्जला उपवास रखा जाता है।
  3. संध्या के समय करवा माता, गौरी माता, और चंद्रमा की पूजा की जाती है।
  4. रात्रि में चंद्रमा के दर्शन करके अर्घ्य दिया जाता है।
  5. पति के हाथ से जल ग्रहण कर व्रत पूरा किया जाता है।

पौराणिक मान्यता :

करवा चौथ की कथा सत्ययुग की एक अन्य कथा से भी जुड़ी है —
एक पतिव्रता स्त्री करवा ने अपने पति को नाग से बचाने के लिए यमराज को भी अपने सत्य और पतिव्रता बल से रोक लिया था। उसके दृढ़ संकल्प से प्रसन्न होकर यमराज ने उसके पति को जीवनदान दिया। तभी से यह व्रत “करवा चौथ” कहलाया।


आचार्य कौशल कुमार शास्त्री 

9414657245

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