भगवान श्री कृष्ण का कुरुक्षेत्र में गोपियों से मिलन

जय श्री राधे राधे

(३६)

आज की भागवत चर्चा में हम भगवान श्री कृष्ण की दिव्य लीला कथा प्रसंग में वासुदेव जी द्वारा यज्ञ का आयोजन, भगवान श्री कृष्ण द्वारा अपने ज्येष्ठ छःभ्राताओ  को पाताल लोक से लाना, तथा  कुरुक्षेत्र में नंद बाबा जसोदा सहित व्रज गोपियों से मिलना कथा प्रसंग का पान करते हैं।।

वासुदेव जी द्वारा यज्ञ का आयोजन करना -:

शुकदेव मुनि राजा परीक्षित से कहते हैं कि हे राजन! जब भगवान श्री कृष्ण भूमंडल पर प्राय सभी दुष्टों का संहार  कर चुके थे। उसी समय 88000 ऋषि मुनि द्वारिका पधारे उनके साथ भगवान देवर्षि नारद जी भी आए। उनको देखकर  अग्रसेन सहित कृष्ण बलराम अपने-अपने सिंहासन से खड़े होकर  उनका स्वागत सत्कार किया और भगवान श्रीकृष्ण ने हाथ जोड़कर उनसे विनती की कि हे ऋषियों! आपने हम पर बड़ी कृपा की है। जो इस प्रकार  आपके चरण हमारे द्वार पड़े हैं।तब ऋषि यों ने भी भगवान श्री  कृष्ण की स्तुति की। हे प्रभु! आप  साक्षात् नारायण हो फिर भी आप हमको इतना मान दे रहे हैं। हम जानते हैं कि आप सर्वत्र कण-कण में व्याप्त हो और इस समय भूमंडल पर दुष्टों का संहार करने हेतु लैला कर रहे हो। तब देव ऋषि नारद ने भी भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति वंदन की। तत्पश्चात वासुदेव जी के कहने पर एक दिव्य यज्ञ का आयोजन किया गया और देव ऋषि नारद जी के सानिध्य में सभी ऋषि-मुनियों ने मिलकर के बड़े आनंद और हर्षोल्लास से महाराज श्री वासुदेव जी का यज्ञ संपन्न करवाया।इस प्रकार यज्ञ संपन्न होने पर भगवान श्री कृष्ण उग्रसेन व देवकी वासुदेव ने सभी अतिथियों को उचित उपहार दे दे कर विदा किया। ऋषि मुनियों का स्वागत सत्कार कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया।

भगवान श्री कृष्ण द्वारा अपने ज्येष्ठ छःभ्राताओ  को पाताल से लाना -:

इस प्रकार शुकदेव मुनि राजा परीक्षित से कहते हैं कि हे राजन! एक दिन देवकी और वसुदेव भगवान श्री कृष्ण और बलराम के पास आए। और वासुदेव जी  श्री कृष्ण के सामने हाथ जोड़कर नारायण रूप में स्तुति करने लगे, और कहने लगे हे प्रभु! मैं आपके इस अवतार स्वरूप को जान चुका हूं। फिर भी मैंने आपको साधारण पुत्र माना। इस प्रकार वासुदेव जी भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति करते हैं। तत्पश्चात माता देवकी भी हाथ जोड़कर श्री कृष्ण से कहने लगी हे कृष्ण! मैं जानती हूं कि तु साक्षात नारायण है।  मैंने सुना है कि तचने अपने गुरु के पुत्र को यमपुरी से लाकर गुरु माता को लौटा दिया था। हे माधव! मुझ माता की  अभिलाषा भी पूर्ण कर दो। मैं चाहती हूं कि तुम्हारे मामा कंस ने तुम्हारे छ ज्येष्ठ भ्राता ओं का वध किया था। तुम मेरे पुत्रों का एक बार दर्शन करा दो।तब भगवान श्री कृष्ण कहने लगे, माता! अवश्य मैं आपकी अभिलाषा पूर्ण करूंगा। ऐसा कह कर  भगवान श्री कृष्ण पाताल लोक में पहुंचते हैं। जब राजा बलि ने देखा कि भगवान श्री कृष्ण पधारे हैं। अतः बड़े स्वागत सत्कार पटपावडे  बिछाते हुए उनका अभिवादन किया। फिर हाथ जोड़कर कहने लगा। प्रभु! कहो किस कारण से आपका आगमन हुआ है? तब भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे हे महाराज बलि! पूर्व काल में मरीचि के पुत्र जो श्राप से असुर  हो गए थे। वे माता देवकी के पुत्र हुए हैं। जो इस समय तुम्हारे यहां हैं। हम माता देवकी के उन छह पुत्रों को लेने आया हूं। ऐसा कहने पर राजा बलि ने उन छ पुत्रो को भगवान श्री कृष्ण को लौटा दिया।

इतनों कहते प्राण तजि गए, ते हिरणांकुश पुत्र जु भये।

 पुनि वसुदेव के जन्मे जाए, इनको हत्या कंस ने आए।

 मार तिन्है माया ले आई, इहठां राखि गई सुखदाई।।

 भगवान श्रीकृष्ण अपने ज्येष्ठ भ्राताओ को लेकर माता  देवकी को दे दिया। अपने पुत्रों को देख कर माता देवकी आनंदित , हर्षित होने लगी, उनके आंचल में दुग्ध की धारा बहने लगी। फिर अपने आंचल से अपने पुत्रों को दुग्ध पान कराने लगी। अपने पुत्रों का मुख देखकर बड़ी आनंदित हुई। माता का दूधपान करते ही छौ पुत्र जवान होकर दिव्य रूप धारण कर दिव्य लोक को चले गए।

सूर्य ग्रहण होने पर यदुवंशियों का कुरुक्षेत्र की यात्रा करना -:

शुकदेव मुनि राजा परीक्षित से कहते हैं कि हे राजन! एक समय सूर्य ग्रहण हुआ। अतः सूर्य ग्रहण के मार्जन के लिए  स्नान व्रत आदि करने के लिए भगवान श्री कृष्ण के कहने पर सभी यदुवंशी बड़े आनंद व उत्साह के साथ कुरुक्षेत्र की यात्रा करते हैं। तब पांडव भी अपने बंधु बांधों के साथ कुरुक्षेत्र आते हैं ।नंदयसोदा सहित गोपो ने सुना कि प्रभु श्री कृष्ण अपने बंधु बांधव सहित कुरुक्षेत्र में आए हुए हैं। तब सभी वृंदावन वासी भी अपने बंधु बांधव सहित कुरुक्षेत्र की यात्रा करते हैं। इस प्रकार जब कुरुक्षेत्र में कुन्ति वासुदेव मिलते हैं। तो उनके आंखों से अश्रु धारा बहने लगती है। दोनों भाई बहन मिलकर  अपने सुख दुख की बातें करने लगते हैं। उधर द्रोपदी भगवान श्रीकृष्ण की पटरानीयो से बातचीत करती है। द्रोपदी ने सभी पटरानियो से जिस प्रकार से भगवान श्री कृष्ण के साथ उनका विवाह हुआ उस प्रसंग की चर्चा करती है।तब सभी पटरानीया द्रोपती को श्रीकृष्ण संग विवाह  प्रसंग सुनाती है।

सुनो द्रोपदी तुम चित लाय, जैसे प्रभु ने कियो उपाय।।

 इस प्रकार हे राजन! जब कुरुक्षेत्र में नंदबाबा यशोदा गोप गोपियां पधारे।, नंदबाबा यशोदा को देखकर  भगवान श्री कृष्ण की आंखों में अश्रु धारा बहने लगी। उधर बाबा नंद यशोदा का हृदय में भी प्रेम का बाढ़ आने लगा। कृष्ण बलराम ने नंद बाबा यशोदा का चरण स्पर्श किया। मैया यशोदा व बाबा नंद ने अपने पुत्रों को गले से लगाया और अपने शोक संतप्त हदय में शांति प्राप्त  करने लगे। मां यसोदा भगवान श्री कृष्ण  का मुख मंडल चूमती हुई  प्रेम स्नेह दुलार करने लगी। मात यशोदा के हृदय में ममता का संसार उमड़ने लगा। इस प्रकार नंदबाबा यशोदा देवकी वसुदेव जी आपस में बातें करने लगे।  जिस प्रकार से  उन्होंने श्रीकृष्ण बलराम का पालन पोषण किया व उनकी बाल लीला का बखान मैया यशोदा और बाबा नंद देवकी वसुदेव जी से करने लगे।।

हे राजन! इसी क्रम में जब भगवान श्री कृष्ण  गोपियों से मिलने लगे।  श्री कृष्ण का मुख मंडल देखकर गोपीयों के हृदय में प्रेम उमड़ने लगा। फिर भगवान श्री कृष्ण सभी गोपियों को घेरा बनाकर बैठ जाते हैं। और बड़े आनंद के साथ उनकी कुशलक्षेम पूछते हैं।  सभी गोपिया अपने प्रियतम श्री कृष्ण का सानिध्य प्राप्त कर अपने आपको धन्य मानने लगी। इस प्रकार हे राजन! सभी कुरुक्षेत्र में जाकर  इस पावन तीर्थ में स्नान व्रत उपवास दान दक्षिणा होम करके पुण्य प्राप्त कर अपने बंधु बांधवों सहित सभी अपने-अपने स्वधाम आ जाते हैं।।

।। जय बोलो श्री द्वारिकाधीश भगवान की जय।। 

आचार्य श्री कौशल कुमार शास्त्री

 9414657245


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