ज्योतिष शिक्षण अध्याय =4
ग्रहों की दृष्टि -;
महर्षि पाराशर ने ग्रहों की दृष्टि का सूक्ष्म विवेचन किया है। क्योंकि ग्रह अपनी दृष्टि से जातक को शुभ अशुभ फल प्रदान करते हैं। अतः महर्षि पाराशर ने ग्रहों की दृष्टि का विश्लेषण लघु पाराशरी में इस प्रकार किया है।
महर्षि पाराशर ने लिखा है कि सभी ग्रह अपने स्थान से सप्तम स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं। परंतु इनमें से कुछ विशेष ग्रह जैसे - शनि 3,10 को और बृहस्पति 5,9 व मंगल 4,8 स्थानों को भी पूर्ण दृष्टि से देखते है।
अन्य ज्योतिष ग्रंथों में 3,10 में एक चरण 5,9 में दो चरण 4,8 में तीन चरण दृष्टि सब ग्रहो की बताई गई है। किंतु महर्षि पाराशर ने पूर्ण दृष्टि को ही विशेष महत्व दिया है।
क्योंकि स्त्री की रक्षा से ही धर्म और संतान की रक्षा होती है। इसलिए सप्तम स्थान अर्थात भार्या स्थान पर सब ग्रहों की दृष्टि होती है। तृतीय पराक्रम भाव और दशम राज्य का स्थान है इसलिए इन दोनों की देखभाल करना भृत्य का काम होता है इसलिए इन दोनों स्थानों को शनि पूर्ण दृष्टि से देखता है।
पंचम विद्या का स्थान और नवम धर्म का स्थान है और दोनों ही भाव गुरु के अधीन आते हैं इसलिए गुरु इन दोनों को 5 और 9 को भी पूर्ण दृष्टि से देखता है।
चतुर्थ भाव को सुख, और अष्टम भाव को आयु का भाव माना गया हैं। इन दोनों का रक्षक नेता होता है इसलिए इन दोनों के स्थानों का का नेता ग्रह मंगल हुआ, इसलिए मंगल चतुर्थ और अष्टम भाव को भी पूर्ण दृष्टि से देखता है।
दृष्टि चार्ट -:
ग्रह = पूर्ण दृष्टि
सूर्य =7
चन्द्र =7
मंगल = 4,7,8
बुध = 7
गुरु = 5,7,9
शुक्र = 7
शनि = 3,7,10
आचार्य श्री कोशल कुमार शास्त्री
9414657245
0 Comments