शनि देव जयंती विशेषांक

 

शनि देव का जीवन परिचय -:

शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है। वे नवग्रहों में प्रमुख स्थान रखते हैं और कर्मफलदाता हैं। शनि देव का जन्म वैशाख मास की अमावस्या को हुआ था, जिसे शनि जयंती कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, वे भगवान सूर्य और छाया (संवर्णा) के पुत्र हैं। उनका एक बड़ा भाई यमराज भी है, जो मृत्यु के देवता माने जाते हैं।

शनि देव का जन्म स्थान:
मान्यता है कि शनि देव का जन्म उत्तर प्रदेश के एटा जनपद में स्थित 'शनि शिंगणापुर' या मध्य प्रदेश के उज्जैन के पास हुआ था, लेकिन विभिन्न पुराणों में स्थान को लेकर मतभेद हैं।

जन्म कथा:
जब छाया ने घोर तपस्या करके शनि को जन्म दिया, तो उस समय वह भगवान शिव की आराधना में लीन थीं। तप के प्रभाव से शनि देव का रंग अत्यंत काला हुआ। कहते हैं, जब सूर्य ने पहली बार शनि को देखा, तो उनके रंग और तेज को देखकर उन्होंने उपेक्षा की, जिससे शनि देव ने क्रोधित होकर पिता को दृष्टि डाली, जिससे सूर्य को कुष्ठ रोग हो गया। इस घटना से स्पष्ट होता है कि शनि की दृष्टि भी अत्यंत प्रभावशाली है।

शनि देव की विशेषताएँ:

  1. न्यायप्रिय देवता - शनि देव का मुख्य कार्य जीवों को उनके कर्मों के अनुसार फल देना है। वे किसी के साथ अन्याय नहीं करते। अच्छे कर्म पर शुभ फल और बुरे कर्म पर दंड देते हैं।

  2. धीमी गति से चलने वाला गह  -:शनि देव नवग्रहों में सबसे धीमे गति से चलने वाला ग्रह है। एक राशि में लगभग ढाई वर्ष (2.5 वर्ष) तक रहता है और संपूर्ण राशि चक्र की परिक्रमा में लगभग 30 वर्ष का समय लेता है।

  3. ‘साढ़ेसाती’ और ‘ढैया’ का प्रभाव:
    जब शनि चंद्र राशि से बारहवें, पहले और दूसरे भाव में होता है, तो इसे ‘साढ़ेसाती’ कहते हैं। जबकि चौथे और आठवें भाव में होने पर ‘ढैया’ या ‘अर्ध-अष्टम शनि’ कहा जाता है। यह समय व्यक्ति के जीवन में कठिन परीक्षाओं का होता है।

  4. शनि की दृष्टि अत्यंत तीव्र होती है:
    शनि की तीसरी, सातवीं और विशेषतः दसवीं दृष्टि बहुत प्रभावशाली होती है। यह जिस भाव पर पड़ती है, वहाँ दंड, विलंब या परीक्षण देती है।

  5. रंग और स्वरूप:
    शनि का वर्ण श्यामवर्ण है। वे नीले या काले वस्त्र पहनते हैं। उनका वाहन काग (काला कौवा), गधा, हाथी अथवा कछुआ भी माना गया है। वे हाथ में धनुष, त्रिशूल और गदा धारण करते हैं।

  6. शनि की प्रिय वस्तुएँ:

    • तिल का तेल
    • काले तिल
    • नीला पुष्प
    • काली उड़द
    • लोहे के पात्र
    • काले वस्त्र
    • रत्न: नीलम
  7. शनि की उपासना और शांति के उपाय:

    • शनि मंत्र का जाप: “ॐ शं शनैश्चराय नमः”
    • शनिवार को पीपल वृक्ष पर जल चढ़ाना
    • काले तिल और तेल का दान
    • श्रमजीवियों और निर्धनों की सेवा
    • शनि चालिसा या शनि स्तोत्र का पाठ
  8. लोकहित में शनि की भूमिका:
    शनि देव समाज के शोषित, पीड़ित, दलित एवं परिश्रमी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे अहंकार, अन्याय और अत्याचार के घोर विरोधी हैं। जो लोग धर्म, नियम, संयम और श्रम के पथ पर चलते हैं, उन्हें शनि देव से भय नहीं होता बल्कि कृपा प्राप्त होती है।

निष्कर्ष:

शनि देव केवल दंडदाता नहीं हैं, वे कर्म-प्रेरक और सुधारक देवता हैं। वे व्यक्ति को जीवन की सच्चाई और धैर्य सिखाते हैं। जो व्यक्ति संयमित जीवन, सत्य आचरण और परिश्रम को अपनाता है, उसके जीवन में शनि की कृपा चमत्कारी रूप से शुभ फलदायक होती है।

शनि जयंती का दिन आत्मनिरीक्षण, संयम और सेवा का श्रेष्ठ अवसर है। इस दिन शनि देव की उपासना करके जीवन की बाधाओं से मुक्ति और न्यायप्रिय जीवन का संकल्प लिया जा सकता है।

जय शनि देव 



आचार्य कौशल कुमार शास्त्री 

9414657245



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