एकादशी व्रत का संपूर्ण विस्तृत विधान शास्त्र निर्णय अनुसार -:
अग्नि पुराण एक महत्त्वपूर्ण पुराण है जिसमें अनेक विषयों पर विस्तृत विवरण मिलता है, जिसमें व्रत, तीर्थ, पूजा विधि, आयुर्वेद, युद्धनीति आदि शामिल हैं। एकादशी व्रत के विषय में भी अग्नि पुराण में उल्लेख मिलता है। यह व्रत विष्णु भक्ति से संबंधित है और मोक्षदायक माना गया है।
नीचे अग्नि पुराण के अनुसार एकादशी व्रत का विधान और निर्णय संक्षेप में दिया जा रहा है/
एकादशी व्रत विधान — अग्नि पुराण के अनुसार
1. व्रत का महत्त्व:
- अग्नि पुराण में कहा गया है कि एकादशी व्रत समस्त पापों का नाश करता है और विष्णुलोक की प्राप्ति कराता है।
- यह व्रत उपवास, जप, ध्यान, कथा और ब्रह्मचर्य का समुच्चय है।
2. व्रत की तिथि-निश्चिति (व्रत निर्णय):
- अग्नि पुराण में कहा गया है कि एकादशी व्रत उस दिन किया जाता है जब सूर्योदय में एकादशी तिथि विद्यमान हो।
- यदि एकादशी तिथि दो दिन पड़ती है तो “स्मार्तों” के लिए एकादशी तिथि जिसमें सूर्योदय होता है और “वैष्णवों” के लिए परवेदिनी (दूसरे दिन जो हरिभक्तों के लिए उपयुक्त होती है) मानी गई है।
3. उपवास का स्वरूप:
- निराहार उपवास को सर्वोत्तम कहा गया है, परंतु सामर्थ्य के अनुसार केवल फलाहार या जलाहार भी किया जा सकता है।
- रात्रि में जागरण कर के भगवान विष्णु की कथा, नामस्मरण, स्तोत्र-पाठ आदि करना चाहिए।
4. पूजन विधि:
- प्रातः स्नान कर के शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- भगवान विष्णु का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करें।
- तुलसी पत्र अर्पण करें, गीता पाठ या विष्णुसहस्रनाम करें।
- एकादशी की रात्रि को विष्णु नाम का जागरण करें।
5. द्वादशी में पारण:
- द्वादशी तिथि में सूर्योदय के बाद उचित समय पर व्रत का पारण (उपवास का समापन) करें।
- ब्राह्मण या वैष्णव को भोजन कराना और दक्षिणा देना पुण्यदायक कहा गया है।
अग्नि पुराण के कुछ उल्लेखनीय श्लोक :
एकादश्यां तु यः कुर्यात् विष्णोराराधनं नरःl
सर्वपापविनिर्मुक्तः विष्णुलोकं स गच्छति॥
(अग्नि पुराण, एकादशी महात्म्य खंड)
अशक्तो यदि नो कुर्यादुपवासं दिने तदा।
तुलसीपत्रं हृषीकेशे समर्प्य नरोऽर्चयेत्॥
व्रत निर्णय की विशेष बात:
- यदि दशमी और एकादशी दोनों दिन एकादशी तिथि हो, तो व्रत उस दिन करें जिस दिन एकादशी का प्रभव काल (सूर्योदय) में हो।
- यदि एकादशी का आरंभ सूर्योदय से पूर्व और समाप्ति भी उसी दिन हो जाए, तो वह त्र्यहव्रत न होकर एकदिवसीय व्रत ही मान्य होता है।
एकादशी व्रत निर्णय पर विस्तृत टीका (टीका एवं विवेचन)
ं1. तिथिनिर्णय का मूल आधार:
- स्मार्त निर्णय में वह तिथि ली जाती है जो सूर्योदय में एकादशी हो।
- वैष्णव निर्णय में वह एकादशी ली जाती है जिसमें परं महत्त्व विष्णुभक्ति हेतु हो, अर्थात:
- यदि दशमी के बाद एकादशी सूर्योदय के बाद आरंभ हो रही हो और अगले दिन सूर्योदय तक पूरी है — तो वह वैष्णव एकादशी कहलाती है।
- यदि एकादशी सूर्योदय से पहले ही लग जाती है और द्वादशी सूर्योदय में है, तो वैष्णव एकादशी नहीं मानी जाती।
2. व्रत प्रकार:
- काम्य एकादशी — फलप्राप्ति के लिए की जाती है (धन, संतान आदि)।
- नैमित्तिक एकादशी — विशेष कारण से (रोग, संकट, संकल्प आदि)।
- नित्य एकादशी — भक्तिभाव से प्रत्येक एकादशी का पालन।
- काम्य व्रत में नियम थोड़ा लचीलापन होता है, किंतु नित्य व्रत में शुद्ध निर्णय अनिवार्य होता है।
3. धर्मसिंधु एवं निर्णयसिंधु के संदर्भ से पुष्टि:
- धर्मसिंधु और निर्णयसिंधु जैसे व्रतनिर्णय ग्रंथों में एकादशी निर्णय पर विशेष जोर दिया गया है:
- यदि एकादशी तिथि वृद्धि, ह्रास, त्र्यह, या क्षय हो, तो विशेष विधि अपनाई जाती है।
- व्रत क्षय की स्थिति में उस मास की एकादशी लुप्त मानी जाती है और मासान्तर में दो एकादशी व्रत होते हैं।
4. पारण नियम:
- द्वादशी में पारण अनिवार्य है, त्रयोदशी को पारण नहीं करना चाहिए।
- व्रतभंग तब होता है जब द्वादशी पारण समय बीत जाए।
- अग्नि पुराण में कहा गया है कि द्वादशीवेला में पारण न करना भी दोषपूर्ण होता है, जैसे एकादशी में अन्न खाना।
एकादशी तिथि निर्णय की पंचांगशास्त्रीय प्रक्रिया
(विस्तृत विवेचन)
वेदांग-ज्योतिष तथा धर्मशास्त्रों में वर्णित नियमों के अनुसार, एकादशी व्रत का निर्णय पंचांग के पाँच अंगों—तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण—में मुख्यतः ‘तिथि’ और ‘सूर्योदय काल’ के आधार पर किया जाता है।
नीचे इसका विधिपूर्वक विवरण प्रस्तुत है:
1. एकादशी तिथि की परिभाषा:
- तिथि = चन्द्रमा और सूर्य के बीच के आंशिक कोण (अंशान्तर) से निर्धारित होती है।
- जब यह अंतर 240° से 252° के बीच होता है, तब एकादशी तिथि मानी जाती है।
अतः किसी भी दिन सूर्योदय के समय यह अंशान्तर अगर एकादशी के भीतर है, तो वह दिन एकादशी के लिए उपयुक्त माना जाएगा।
2. एकादशी व्रत निर्णय के लिए मुख्य नियम:
मुख्य नियम:
"यस्यां तिथौ सूर्योदयः सैव तिथि:"
(जिस तिथि में सूर्योदय हो, वही तिथि व्रत के लिए ग्राह्य है।)
यह नियम स्मार्तों और सामान्य व्रतधारियों के लिए है।
विशेष स्थिति में निर्णय:
🔸 यदि एकादशी दो दिन हो:
- पहले दिन सूर्योदय में एकादशी और अगले दिन भी तिथि का कुछ अंश है:
- तो पहला दिन स्मार्तों और गृहस्थों के लिए उपयुक्त होता है।
- यदि दूसरा दिन हरिभक्तों के लिए अधिक अनुकूल हो (जैसे दिनभर एकादशी है), तो वह वैष्णवों के लिए उपयुक्त होता है।
🔸 एकादशी क्षय (लुप्त) हो:
- यदि दशमी के पश्चात तिथि प्रत्यक्ष नहीं होती (अत्यल्प काल के लिए होती है), तो एकादशी लुप्त (क्षय) मानी जाती है और उस मास में केवल एक एकादशी व्रत होता है।
🔸 त्र्यहव्रत स्थिति:
- यदि एकादशी तिथि तीन दिन तक फैली हो (दशमी अंत, फिर पूर्ण एकादशी, और फिर द्वादशी संयोग), तब त्र्यहव्रत निर्णय किया जाता है — विशेषकर वैष्णव परंपरा में।
3. सूर्योदय का निर्णय क्यों?
- धर्मशास्त्रों के अनुसार, सूर्योदय का समय ही धर्मकर्म का निर्धारक काल होता है।
- इसलिए जो तिथि सूर्योदय के समय चल रही होती है, उसी तिथि के नाम पर दिन और व्रत तय होता है।
4. एकादशी निर्णय के पंचांगीय स्रोत:
उपयोगी पंचांग संकेतक:
तत्व | उपयोग |
---|---|
तिथि | एकादशी तिथि सूर्योदय में होनी चाहिए |
सूर्योदय समय | व्रत निर्णय का मूल आधार |
मास | शुक्ल या कृष्ण पक्ष |
विक्रम संवत/ शक संवत | पंचांग अनुसार तिथि क्रम निर्धारित करना |
चन्द्र अंश | तिथि के लिए उपयोगी (240°–252° = एकादशी) |
5. व्यवहारिक निर्णय प्रक्रिया (पंचांग देखकर):
-
दशमी की समाप्ति और एकादशी की शुरुआत समय देखें।
-
एकादशी तिथि का सूर्योदय में होना अनिवार्य है।
-
यदि दोनों दिन एकादशी है:
- पहले दिन सूर्योदय में एकादशी है = गृहस्थों के लिए।
- दूसरे दिन एकादशी का प्रभाव अधिक, पूर्ण दिवस है = वैष्णवों के लिए।
-
द्वादशी सूर्योदय में हो तो उसी दिन पारण करें।
-
पारण काल चूकने पर व्रत दोष माना जाता है।
6. धर्मसिंधु से प्रमाण:
"सूर्योदयसमये या तिथि सैव तिथिरुच्यते।
यस्यां चैकादशी सा च व्रताय योग्यतामियात्॥"
निष्कर्ष:
- एकादशी व्रत निर्णय पंचांग की गूढ़ गणना और धर्मशास्त्रीय सिद्धांतों पर आधारित होता है।
- इस निर्णय में सूर्योदय, तिथि प्रवेश/अवसान, द्वादशी समय, और वैष्णव/स्मार्त परंपरा को ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक है।
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